असर इसकदर गहरा हो गया मोह्हबत का तेरा
मुख़्तसर मुलाक़ात से दिल भरता नही मेरा
के गुज़रे जो रोज़ साथ तेरे ,वो शाम मिल जाए
इस रिश्ते को ख़ूबसूरत कोई नाम मिल जाए
मेहरूम थे सदियों से तेरे दीदार के वास्ते
कर दे इनायत हम-नफ़स चाहत के वास्ते
अज़ीय्यत के सबब बन रहे ये फुर्क़त के लम्हें
सुकूँ चाहूँ के बाहों में तेरी मक़ाम मिल जाए
इज़तिराब में गुज़रती है रातें मेरी
रफ़्ता रफ़्ता चलती है ये सांसे मेरी
तअस्सुर बड़ा गहरा है तेरे इश्क़ का ज़ालिम
तख़य्युल में आते भर हो के दिल को आराम मिल जाए
उज़्र ना हो कोई इंकार के वास्ते
हैं तेरे बिन वीरां सब मंज़िलो के रास्ते
इम्कान तेरे लौट आने का इस दिल से ना जाए
अधूरी कहानी को खूबसूरत इक अंजाम मिल जाए
रब्त बहोत गहरा है मेरी मोह्हबत का तुझसे
के तू ना कहे और जिस्म से मेरे जान निकल जाए
-sheeba saifi
- shibu