ShAvvy Khan   (ShAvvy Khan)
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Joined 7 February 2017


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Joined 7 February 2017
24 OCT 2022 AT 22:46

कुछ रास्ते रहे, मंज़िलों से बेखबर,
उम्र भर चलता रहा,इश्क़ का सफ़र।

ये नहीं कि एक ठिकाना हो उनका लाज़िम,
देखा टूटा दिल जहाँ, बनाया वहीं पर घर।

हौसला भी कैसे रखते आँधियों के दौर में,
ख़ौफ़ की थी सल्तनत, डर का था मंज़र।

कुछ पलों के लिए तो साथ दे 'बाग़ी' यहाँ,
फ़र्क तब ही आ गया जब मोड़े मुँह रेहबर।

आज कल के दौर में संभल कर रहना "शावेज़"
कुछ अपने ही होते हैं, जो घोंपते हैं पीठ में ख़ंजर..!

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2 AUG 2022 AT 9:16

थामकर हथेली कोई तबीयत नहीं देखता,
देखने वाला दिल की कैफ़ियत नहीं देखता।

सबको देखना है हर किसी से मुनाफ़ा अपना,
ख़ुदपरस्त, रिश्तों की अहमियत नहीं देखता।

एक हसीं चेहरे की तमन्ना रहती है सबको,
इश्क़ में कोई किसी की नीयत नहीं देखता।

मनमार्जियों का दौर है, किसे किसका ख़्याल,
दिल दुखाने वाला फिर हैसियत नहीं देखता..!

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20 JUL 2022 AT 6:01

मर चुकी है रूह जिनकी आज समझाते हैं,
सलीका ग़लत ख़ुद का और हमें सिखाते हैं।

जिनकी बातें ताउम्र हम पर बरसाती अज़ाब,
तेहज़ीब क्या है, आज हमें दिखाते हैं।

अपनी ज़ुबाँ से क्या कहें हम हमारी आपबीती,
ज़ख्म सारे अल्फ़ाज़ चीख कर तुमको बताते हैं।

जब तक है चाँद ओ सूरज तब तक कलेश ये,
मज़हबों के आईने ये अक्स क्यों दिखाते हैं?

हमनफ़स कोई बने तो वो भी बंदिश जैसी है,
जो हो जाएँ रुखसत हम फिर से नहीं आते हैं..!

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5 JUL 2022 AT 7:08

दिल के छाले नहीं लायक इश्तेहार के,
यूँ तो मिल जाएंगे और ख़ातिर प्यार के,
एहदे वफ़ा का एहद भी ना काबिल-ए-यक़ीं
ज़ख्म इतने हैं मयस्सर मेरे दिलदार के..!

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7 JUN 2022 AT 7:52

अब इश्क़ इतना भी मजबूर नहीं है,
धड़कनें हैं आवारा, तुझसे दूर नहीं है।

ग़ज़ल, नज़्म, और हैं कुछ तराने,
शोर जहाँ में बहुत है, पर सुर नहीं है।

अब मैं अब्र पर रखता हूं वस्ल की नीशानी,
क्या करूँ कि अब हसीं तअस्सुर नहीं है।

क्यों नहीं दुखता है आज सीना मेरा,
शायद प्यार तो है पर दर्द ज़रूर नहीं है।

इतना भी क्यूँ इतराना मोहब्बत पर "शावेज़"
तू बदनाम है इस हुनर में, मशहूर नहीं है..!

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3 APR 2022 AT 4:20

वो है कोई जो अंजुम बनाता है,
तारों को एक छत के नीचे लाता है।

दरकार नहीं उसे इस तवज्जो की,
फ़न के ख़ातिर ये ज़हमत उठाता है।

रखता है औरों कि आँखों पर ख़्वाब,
तो क्या,ग़र पेशा उसे दिन-रात जगाता है।

ये महफ़िल भी क़ायल उसके कलामों की,
"शावेज़" हर हर्फ़ बड़े प्यार से लिख जाता है..!

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12 JAN 2022 AT 4:41

यही सोच-सोच हम घबराते रहे,
मोती आँखों से हम बहाते रहे।

कि वो तो बस लिख रहे ग़मनामा,
और हम हैं जो ज़ख़्म सहलाते रहे।

ज़ेब-ए-तन ज़ख़्म जो इनायत उनकी,
तमगे सा ज़माने को हम दिखाते रहे।

हम ही मज़लूम और सज़ा भी हमको,
ख़ैर ये सज़ा भी हम निभाते रहे।

ला-दीनी "शावेज़" का रब भी बेरब्त
दूआ में फिर भी हाथ उठाते रहे..!

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11 SEP 2021 AT 8:22

बस इसके इलावा और कहीं हारा नहीं।
हुआ पूरे जहां का, पर हुआ तुम्हारा नहीं।

ये ज़िंदगी फिर भी चलती है बदस्तूर मेरी,
तन्हा है मगर अब दरकार-ए-सहारा नहीं।

वो तूफ़ाँ भी क्‍या, तेरी साँसें न हो जिसमें,
रहना उसी में है और हासिल किनारा नहीं।

तुमको बनाया सनम तो ख़तरा भी लाज़िम,
ज़ख्मों से यूँ किसी ने हमें सँवारा नहीं।

की है जो इनायत अपने नज़रो के तीर की,
अब और कोई घाव मुझे गवारा नहीं।

मुझ पर किए अज़ाबों का हिसाब न पूछो,
एहसान अब भी सितम का उतारा नहीं।

तुम पर मरने की हिमाकत क्यूँ करूं मैं?
हूं "शावेज़" शाइस्त कोई मैं आवारा नहीं..!

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3 SEP 2021 AT 7:59

पीने गए थे मयकदे, तेरी आँखो से पी आए।
किस्मत थी जो मयख़ाने का रास्ता भूल आए।

ऐ मोहब्बत बरदाश्त नहीं बरसात-ए-अश्क़ अब,
आँसूओं के ज़ख़ीरों को, हम घर भूल आए।

हर बनावटी मुस्कान पर ज़ाया क्यों करें तारीफ़ यूँ,
चेहरे पर जो चमकता नूर था, वो किधर भूल आए ?

इश्क़ किया है बे-ग़रज़ हमनें, चाहत-ए-वफ़ा नहीं,
हया के तरफदारों, हम नुक़्ता नज़र भूल आए।

"शावेज़" को दरकार नहीं तारीफ़-ए-मोहब्बत यारों
मारो तुम खंजर इस सीने पर, हम असर भूल आए..!

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24 JUN 2021 AT 18:35

ये ना पूछ ए दुनिया कि मैं कहाँ हूँ,
हूँ बुलंदी पर, तभी तो तनहा हूँ।

मुझको मेरी तन्हाई रास आती है,
हूँ अकेला पर खुद में एक कारवाँ हूँ।

सादगी में मेरी तुम रंग ना तलाशो,
हूँ सुकून बक्श वो बेरंग हवा हूँ।

हर एक बात मेरी नहीं होती शिरीन,
मर्ज़ हूँ कभी मैं, तो कभी दवा हूँ।

मैं नहीं हूँ वो कहानी जो मुकम्मल है,
"शावेज़" हूँ, बकमाल मुख़्तसर रहा हूँ..!

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