मैं उन किताबों में ही अच्छा दिखता हू,
वही जिनमें फिज़ूल इश्क़ के किस्से दोहराए जाते हैं,
उनमें कुछ ठीक ठाक सा लिखा गया हूँ मैं,
और वो तेरे दरख्त पर रखी जो पुरानी सी कॉपी है,
उस के पीछे की ढीली सी पन्नी पर,
सूखे हुए स्याही के धुँधले अक्षरों सा मैं मिलूंगा तुझे,
उनमें भी, जितना बाक़ी हूँ मैं, अच्छा दिखता हूँ...
वक्त बेवक्त पढ़ा कर मुझे, और इस तन्हाई से रिहा कर मुझे,
पर अपनी आँखों से मत देख,
के मैं किसी पुराने मकान के मलबे सा बिखरा हुआ कुछ इस तरह मिलूंगा,
कोई अनजान सा दर्द तेरे नस नस में घुल गया हो जैसे...
कुछ अपने दिल से पढ़ा जो अगर तूने,
मैं आऊँ भी ना समझ, तब भी अच्छा दिखूँगा...
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