कोई तराजू नहीं होता रिश्तों के लिए.
परवाह बताती है कि ख्याल कितना है...-
घमंड बता देता है पैसे कितने है.
तहजीब बता देती है खानदान कैसा है...-
ना ल्फजों का लहू निकलता है ना किताबें बोल पाती हैं,
मेरे दर्द के दो ही गवाह थे और दोनो ही बेजूबां निकले..!!-
बदस्लूकी का एक नया हूनुर सीख रहा हूँ.
सुना है अब लोगों को इज्ज़त रास नहीं आती...-
मत करो विश्वास किसी का आजकल,
लोग अपने फायदे के लिए "माफी" भी मांग लेते हैं |-
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग।।।।
रो रो के बात कहने की अब आदत नही रही।।।।-
एेबो को मेरे आपने ढ़ांप दिया हुजूर.
क्या बात है आपने चर्चा नही किया...!!-
काटा है आस्तीन के सांपो ने इस क़दर.
मैं सामने पड़ी हुई रस्सी से डर गया...-
चरागों को उछाला जा रहा है।।।हवाओं पे रोब डाला जा रहा है।।। हमीं हैं बुन्याद के पत्थर।।। हमीं को घर से निकाला जा रहा है।।
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*"अनुभव कहता है*
*खामोशियाँ ही बेहतर हैं,*
*शब्दों से लोग रूठते बहुत हैं..."*
*जिंदगी गुजर गयी....*
*सबको खुश करने में ..*
*जो खुश हुए वो अपने नहीं थे,*
*जो अपने थे वो कभी खुश नहीं* *हुए...*
*कितना भी समेट लो..*
*हाथों से फिसलता ज़रूर है..*
*ये वक्त है साहब..*
*बदलता ज़रूर है..*-