कवयित्री राहिनी   (ऋचा सिंह भदौरिया)
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Joined 11 June 2020


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Joined 11 June 2020

इतनी जोर से मत हँसो,
तुम लड़की हो,
ये किस ढंग से बैठी हो,
तुम लड़की हो,
दुप्पटा सही से डालो,
तुम लड़की हो,
ये कैसे कपड़े पहने हो,
तुम लड़की हो,
नौकरी की इजाजत लो,
तुम लड़की हो,
देर रात में घर कैसे आयी,
तुम लड़की हो,
अरे गाली क्यों देती हो,
तुम लड़की हो,
अपने लिए स्टैण्ड कैसे लिया,
तुम लड़की हो !!

-



औक़ात कहाँ मेरी,

कि मैं तुम्हारे आगे,
अड़ जाऊं,

पर करके भक्ति तुम्हारी,

मैं खुद को पारो (पार्वती),
समझती जाऊं,

इतनी जड़ित तपस्या भी नहीं मेरी,

कि साक्षात तुम्हें मैं भोले,
पा जाऊं,

मात्र इतनी सी है विनती मेरी,

कि वर मैं भोले,
तुमसा सी पा जाऊं !!

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मैं देख कर झरोखों से ठाकुर साहब को लजा जाऊं!
यदि वो प्रत्यक्ष मेरे आ जाए तब तो मैं जान से ही जाऊं !!

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कभी बनारस की,
गलियों में,
कभी महादेव के,
चरणों में,
कभी केदारनाथ के,
रास्ते में,
कभी घर में बने छत के,
छज्जे में,
कभी ठाकुर साहब के,
जीवन में,
कभी अपनी लिखी,
कविताओं में,
उपरांत मृत्यु के भी,
जीवित मुझे रहना है,
बस इतना सा प्रसिद्ध,
इस राहिनी को होना है !!

-



अभी एक फ्रेम में कोई तस्वीर तो नहीं है हमारी साथ में !
पर मैंने अपने आने वाले जीवन के हर मोड़ में आपको ही साथ देखा ठाकुर !!

-



आप मात्र,
आप तक,

सीमित नहीं,
रहे है अब,

मेरी इस,

छोटी सी,
ज़िन्दगी का,

महत्वपूर्ण,
हिस्सा है,

अब आप,
ठाकुर साहब !!

-



मैं अखण्ड,
अटल,
दैव,
दानव,
प्रत्येक,
रूप में हूँ,
यदि,
नास्तिक,
हो तुम,
तो मैं,
तुम्हारे,
संरक्षण में,
बिना तर्क,
के कण कण,
में व्याप्त हूँ!!

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मेरी हर छोटी बड़ी हरकत पर ध्यान देते है,
ये मेरे ठाकुर साहब न,
जो पास हो मेरे तो नजरें एकटक मुझ पर ही रखते है !!

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करने दो लोगों को यात्राएं विदेश की,
हम बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन साथ करेंगे !!

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आपकी आँखों में जो मैं पूरा संसार देख जाऊं,
अजी सुनते है ठाकुर साहब,
फिर इन नजारों को मैं भला क्यों ही देखना चाहूँ !!

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