Seema Tiwari  
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Joined 12 March 2018


Joined 12 March 2018
17 MAR AT 11:41

कहते हैं वक़्त हर ज़ख्म भर देता है
पर उन ज़ख्मों का क्या जो वक़्त ख़ुद ही देता है
कैसे इस ज़ालिम को अपना हकीम मैं मान लूँ
जो भरने के नाम पे हर ज़ख्म कुरेद देता है

- सीमा संदीप तिवारी -

Kehte Hain Waqt Har Zakhm Bhar Deta Hai
Par Un Zakhmon Ka Kya Jo Waqt Khud Hi Deta Hai
Kaise Is Zaalim Ko Apna Hakeem Main Maan Loon
Jo Bharne Ke Naam Pe Har Zakhm Kured Deta Hai

- Seema Sandeep Tiwari -

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26 AUG 2023 AT 20:49

अपनों के हँसी-ख़ुशी-बातों के शोरगुल से लौट
परदेस का सन्नाटा बहुत कचोटता है
फिर दिन बीतते हैं
और खामोशी की आदत पद जाती है
जैसे गुलाब को काँटों में महकने की आदत हो जाती है

- सीमा संदीप तिवारी -

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28 JUL 2023 AT 16:44

यूँ लगी गले मुझसे
कि भिगो गई मेरा आँचल
मानो बरसों बाद दो बहनें
मायके में मिल रही हैं
मुंबई की बारिश और मेरा
कुछ ऐसा ही है नाता
न उसके आँसू थम रहे हैं
न मेरी बातें थम रही हैं

- सीमा संदीप तिवारी -

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21 JUL 2023 AT 17:14

I am happy to help you with my heart ❤️ but I’m sure you are safe

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26 JUN 2023 AT 9:57

रंग, घोंसले, फल, फूल सब किरायेदार
एक एक कर सब साथ छोड़ गये
अब सिर्फ़ स्मृतियाँ झूलती हैं उस बूढ़े पेड़ से
जो बाँहें पसारे आज भी रोज़ की तरह
कड़कती धूप में ख़ुद सिककर
आते जाते हर जाने अनजाने को
छाँव देता है, प्यार देता है, आशीर्वाद देता है
फिर चाहे कोई उसे नमस्कार करे या उसका तिरस्कार

- सीमा संदीप तिवारी -

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7 APR 2023 AT 7:30

किताबों में सूखे फूल, पन्नों पे लिखी नज़्म
अपनों के बीच ज़िक्र, मेज़ पे बिखरी पुरानी तस्वीरें
और कुछ पुराने ख़त
जिन में अमर हैं कुछ गिले
और कई शिकवे

तुम्हारी यादें बाँट आया हूँ थोड़ा थोड़ा सब में
तुमने तो साथ पहले ही छोड़ दिया
अब ये कमबख़्त याददाश्त भी मेरा साथ छोड़ रही है
मेरे जीने का सहारा तो कल भी तुम्हारी यादें थीं
और आज भी हैं
पर अगर कल तुमसे रूबरू होना चाहूँ
और न चाहकर भी रास्ता भटक जाऊँ
तब तुम्हारी यही छोटी छोटी निशानियाँ
मुझे फिर एक बार तुम तक पहुँचा देंगी
मैं बिखरा बिखरा सा लौटूँगा
और तुम मुझे समेट लेना
हमेशा की तरह

ख़ुद को भूल जाना मंज़ूर है मुझे
पर तुम्हें भूलना
ये कतई गवारा नहीं

- सीमा संदीप तिवारी -

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3 APR 2023 AT 5:45

माँ से काम करने को कहो कभी
तो उनकी बातों में
न तो “आराम” जैसे शब्दों का उल्लेख मिलेगा
न ही आराम करने का एक भी उन्हें बहाना याद आएगा

पर माँ से एक बार आराम करने को कह दो
तो उन्हें सौ काम याद आ जाएँगे

माँ के काम का न ओर होता है न छोर
और उस पर हम परिवार के लोग
माँ से न केवल छोटे बड़े काम कराते हैं
बल्कि घर के छोटे-बड़े कामों में माँ का हाथ भी नही बटाते हैं
अपने इस व्यवहार से
हम केवल कामचोर ही नहीं बन जाते
बल्कि माँ के आरामचोर भी बन जाते हैं

जितना हो सके उतना माँ का हाथ बटाओ
वो भी बिना उसके कहे या किसी “ख़ास” दिन का इंतज़ार किए
क्या पता जो अपने हाथों से तुम्हारा जीवन सँवारती है
शायद तुम्हारे हाथ बटाने से
उसके जीवन में भी
दो पल का ही सही पर आराम आ जाये

- सीमा संदीप तिवारी

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14 JAN 2023 AT 7:41

जो आज है जाने वो कब कल बन जाये
जो समक्ष दिख रहा
जाने कब आँखों से ओझल हो जाये
अपने रिश्तों को अपनी कामयाबी पे मत कर न्यौछावर
तेरी मज़बूत बंद मुट्ठी को ठेंगा दिखा
जाने कब वक़्त की रेत
हाथों से फिसल जाये

- सीमा संदीप तिवारी -

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18 OCT 2022 AT 22:40

सफलता की ऊँचाइयों को छू जाना तुम
तरक़्क़ी की बहारों में झूम जाना तुम
सारा जहान है तुम्हारी मंज़िल
जहाँ दिल चाहे घूम आना तुम

पढ़ाई, नौकरी, ज़िंदगी
तुम्हें चाहे जिधर भी ले जाये
बस साल में इक बार
घर लौट आना तुम

जानती हूँ यहाँ देखने, घूमने, कमाने को कुछ भी नहीं
पर हो सके
तो पिता के पाँव और माँ का आँचल
चूम आना तुम

- सीमा संदीप तिवारी -

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11 AUG 2022 AT 2:19

अपना प्रेम, अपनी प्रार्थना, अपनी पुण्याई
सब नाम तेरे लिखकर भाई
एक सूत्र में बाँध बहन सहेजती है
और राखी स्वरूप तुम्हें भेजती है

सूना आँगन सूनी कलाई
आतुर आँखों से बाट जोहता भाई
उदास चेहरा उसका फिर खिल उठता है
जब बहन की राखी लिए डाकिया दस्तक देता है

झूम उठता है घर आँगन
चहकती महकती है क्यारी क्यारी
गूंज उठती है राखी से
जुड़ी हर याद प्यारी

वो नेग पर भैया का चिढ़ाना और बहन की अबोध सी हट
वो भैया का मनाना और बहन का मुस्करना झटपट
भाई-बहन की शरारतों और नटखटपन से सरोबार
राखी का हर क़िस्सा
जो आरती की थाल, मिठाई, रोली टिका संग
बन गया इस पावन त्योहार का अभिन्न हिस्सा

सोचकर भर आती हैं आँखें
भर आता है मन
इस पावन त्योहार के बहाने ही हर साल
मानो लौट आता है बचपन

- सीमा संदीप तिवारी -

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