Sayan Pathani   (सायन पथनी "मधुकर")
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Joined 27 November 2017


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Joined 27 November 2017
22 JAN AT 10:17

कनकमयी करुणाकर रघुवर,
भाल सुशोभित राजे दिनकर।
प्रभुवर रूप अयोध्या राजा,
सियाराम तिहं कण-कण वासा।।
त्रेता जुग दशरथ घर जन्मे,
रघुकुल राम चले वन-वन में।
पग धर शिला-अहिल्या तारी,
भ्रातु लखन संग ताड़का मारी।।
जनकपुरी पुरूषोत्तम जाये,
माँ सीता संग ब्याह रचाये।
पिता-वचन रख सिर-माथा,
तजे राज्य, सुख-वैभव नाथा।।
केवट ने प्रभु-नाव तराई,
चित्रकूट पहुँचे रघुराई।
हरे प्राण खर-दूषण के,
चाव-चबाए बेर शबरी के।।
मिले हनुमंत सकल जग जानी,
सागर बांध सेतु की ठानी।
चड़े लंका प्रभु दल-बल से,
मिलन हेतु पुनः सिया से।।
हारा प्रभु ने कुंभकर्ण को,
दिया प्रश्रय भक्त विभीषण को।
दशानन का नाभि-कुंड छेदा,
तिमिर काल श्रीराम ने भेदा।।
राघव की लीला का रस ये,
सत्य विजित तमस् काल ते।
पूजित सब जग राजा राम,
पतित पावन सीता-राम।।

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3 NOV 2023 AT 19:58

जीवन के कोरे कागज में,
वक्त की मार की सिलवटें-
लिपटी मिली, लेखनी की करवटों पर।
कहीं सख़्त स्याह सी,
नरम सी कहीं शून्य पर।
गहराइयों में इस थकान की-
निकल भागने लगी स्मृतियों की कथाएं!
स्तब्ध सा हृदय,
दवात की चिता पर बैठा-
लेखक को सहला रहा है।।

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18 OCT 2023 AT 19:12

दिनकर के प्रकाश तले छुपती शाम,
किवाड़ खोले खड़ी आराम कुर्सी-
थक गए हैं, श्रांत हैं।
पथिक आ गए हैं, छांव में!
पूर्ण कर यात्रा एक-
जीवन के अर्थ की।
किन्तु! कुछ छायाचित्र रह गए,
स्मृति पटल पर!
यौवन के दिन,
अल्हड़ मुख-कान्ति के दिन,
कुछ मित्रों का संग-
प्रतिदिन! प्रतिपल।
ढलती शाम में चले गए,
पथ पकड़े प्रत्येक पथिक-
राह अपनी!
एक बूँद शेष अश्रु की-
नयनों के आनत तल से!
स्पर्श करती सन्दल वायु,
स्मृति पटल को!
निहारता पथिक, आराम कुर्सी पर,
अग्रिम यात्रा के पथ को।

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22 JUN 2023 AT 22:00

क्या शून्य धरा को समझूँ मैं,
प्रतिपल बाधा में उलझूँ मैं?
माँ के तर अंचल से उतरा,
बाबा के जूतों में संवरा।
तुम कहते तमस व्याघ्र सम है!
पुलकित मन का भान कम है!
लिप्सा-अनल में सोम भरा,
भीड़ भरी, क्यों एकल डरा?
पथ कीलित, पथिक रुधित,
दिनकर दिवस में पीड़ित।
फिर कहते स्वागत योग्य तुम्हीं,
जीवन, जिज्ञासा, ज्योत यहीं,
कौतूहल संसार कहा,
सत्य चराचर चिरकाल रहा,
साँझ स्वप्न संग आए,
प्रेम भीग-भीग बरसाए।
यहाँ शब्द, शब्द का अर्थ विलोम,
किंकर्तव्यविमूढ़ सा रोम-रोम।
सोचूँ मैं, क्या जीवन समझूँ मैं,
तरने भवसागर! उलझूँ मैं?

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28 NOV 2022 AT 19:36

Do you know?
how it feels!
When the fingers-
touched you,
to put on your hair,
behind ears!
The moment,
when the heavy head-
with the scarce problems,
was under your chin!
Leaving all the burden-
On your shoulders!
The feel of-
Nose, rubbed your cheeks
Gently!
That sound-
Of your heart beat,
heard through ears-
with a head on the heart!
You know-
The feel!

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20 NOV 2022 AT 8:20

Into the woods of Cedar and Pines,
In a timber of complete silence,
No chirupping of birds,
I only heard-
The breath you took-
Inhale and Exhale!
The presence in itself scerene and divine,
A feeling of roaming, just you and mine,
The filtration of light,
Through woods just bright-
The sun is on your face-
Basking and Promising!
A walk together throb and shrine,
Sharing some feels of opine,
The only beat in the woods,
under the cover of cold and hoods-
Jiffy and Trice!

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5 NOV 2022 AT 19:34

मैं चुप आँखों से रोया हूँ,
तन अंदर से खोया हूँ।।

आज साँझ समय बरसात हुई,
बूँदो की जैसे धार हुई।
उमड़-घुमड़ बादल बरसे,
चहुँ ओर दिशा मिट्टी महके।
डूब रहा पश्चिम में दिनकर,
इंद्रधनुष सप्त रंग रंगकर।
धरा का आज श्रृंगार हुआ,
सौंदर्य का पुनः रसपान हुआ।।

बाहर कितना कोलाहल है,
चित भीतर से पागल है।
आवेग अश्रु का भीतर से,
जैसे वर्षा टकराये पत्थर से।
आनंद नहाई आज धरा,
चित लेकिन मेरा अश्रु भरा।
जला रही यहाँ अनल प्रतिपल,
मन शुष्क पड़ा और बाहर जल।।

मैं जग भीड़ में खोया हूँ,
चुप आंखों से रोया हूँ।। - सायन पथनी 'मधुकर'








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22 AUG 2022 AT 19:57

बच्चों का क्या है जनाब! बस बड़े हो जाते हैं,
माँ-बाप जवानी से शाम में ढल जाते हैं।
काश! होता ऐसा कि थाम लेता वक्त कोई,
जब बच्चे छोटे, माँ-बाप जवान रह जाते हैं।

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20 AUG 2022 AT 21:15

कहाँ मैंने ढूंढा कूचा अपना तेरे आँगन में,
मैंने तो बस तेरी आँखों का सजदा किया था।

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1 AUG 2022 AT 19:35

उसकी हर एक कशिश को खुदा माना था,
मोहब्बत थी, पर दोस्ती को वफ़ा माना था।
उसकी रजा में रजा मेरी, ना में ना मेरा,
चाहत को मैंने उसकी हर दफा माना था।।

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