Saurav Pandey   (सौरभ विनोद पाण्डेय)
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Joined 11 July 2017


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3 FEB 2022 AT 22:09

जिंदगी वही जो बीती तनहाइयों में ,
भीड़ में , बाजार रोशन हुआ करते है ,
जिया कर तू भी भीड़ में मगर ,
अपनी तनहाइयों का हौसला बनाये रख ।
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3 FEB 2022 AT 22:06

दिल की दिल मे दबाये रख
धधकती आग जलाए रख
है कहाँ , कौन तेरा ,
अकेले चलने की हिम्मत बनाये रख ।

खुश होकर हँसना ,
दुखी होकर रोना ,
तू भी यह निष्ठुर नियम बनाये रख,
जीता जा , जिंदगी का माहौल बनाये रख ।
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21 NOV 2021 AT 1:19

तू चला-चल ,
अभी रात सही ,
कल सवेरा हो जाएगा ।
पूछता भले न कोई आज हो ,
कल संसार तेरा हो जाएगा ।
तू चला-चल ।

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12 OCT 2021 AT 2:47

शब्द न थे , कुछ कहने - सुनने को ,
वो मुस्कुरा दिए , और बात हो गयी ।

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28 JUN 2021 AT 13:54

इठलाती खिलखिलाती शामों का अंजाम कुछ और था ।
तेरी राहें गुज़रती तो यहीं से थी , तेरा मुक़द्दर मुक़ाम कुछ और था ।
दरिया को समझ बैठा माँझी अपने लिए , उस दरिया का पैग़ाम कुछ और था ।
कि निहारते-निहारते चाँद को भोर हुई ,
उस चाँद का आसमान तो कुछ और था ।
समझ बैठे थे तुम जिसे जिंदगी अपनी ,
मन बहलाने को साज़ो सामान कुछ और था ।
लूटते-लूटते जिंदगी बीत गयी ,
छह गज का तेरा इंतजाम कुछ और था ।

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16 JUN 2021 AT 11:08

तुम्हारे नुस्ख़े , आसान , सब सुलझाते
यह दुनियावी मामले , लूटते , भरमाते ।
याद जब-जब तुम्हारी आती है ,
सलाह सब साथ ले आती है ।
गूंजती आवाज तुम्हारी अब भी कानो में ,
टटोलता-ढूढ़ता मैं खंडहर मकानों में ।
माफ करना मैं " आप " को " तुम " कहता हूँ
अब "मैं " , "तुम" , खुद ही खुद में रहता हूँ ।

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16 JUN 2021 AT 3:23

काश तुम्हें फिर पाया जा सकता ,
तुम हो जहाँ , वहाँ जाया जा सकता ।
तुम गए तो , मैं खो गया हूँ
मेरे अंदर , मैं कम हो गया हूँ ।
काश तुमसे मिला - मिलाया जा सकता ,
काश मन को भरमाया जा सकता ।
तुम कहाँ हो , दिखते नही ,
बादलो के उस पार , या इस पार
काश इन बादलो को नीचे बुलाया जा सकता ।
काश तुम्हे फिर पाया जा सकता ।

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29 MAY 2021 AT 2:12

ये प्रेम इस लोक भर का नही ,
कौन मुझे तुमसे अलग कर पायेगा ,
ये सूरज , ये चाँद , ये धरती , ये अम्बर ।
साक्षी रहेंगे जनम-जनम भर ,
वो अग्नि हमें फिर एक कर जाएगी ,
जब तुम में मैं , और मुझ में तुम होगी ।


कौन हो तुम ।

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29 MAY 2021 AT 2:06

तुम बिन जीने का अंजाम कैसा हो ,
शरीर बिन जान , जैसा हो ।
मृतक शरीर मे प्राण भरती तुम हो ,
मैं जो मैं हूँ , पूर्ण करती तुम हो ।

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29 MAY 2021 AT 2:01

कब मुझसे मिल , मुझमे ही मिल गयी ,
रोम-रोम में स्वास , तुम्हारी घुल गयी ।
तुम में खोकर , खुद को पाता हूँ ,
रफ्ता-रफ्ता मैं , तुम होता जाता हूँ ।

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