हमारी प्राथमिकताओं की सूची में सबसे नीचे हम अपनी इच्छाओं, अपने सपनों को रख देते है। रिश्ते, ज़िम्मेदारी, प्यार, ज़रूरत सब को पूरा करते - करते हम ये भूल जाते है एक बात वो भी थी जो हमने खुद से कही थी। पर परिस्थितियों को ढाल बनाकर हमने अपने आप से कह दिया है की शायद क़िस्मत में नही है, या हमारी प्राथमिकता अब कुछ और है। यह स्वीकार कर लेना की हम अपने सपनों के बिना भी जी लेंगे हमारा अपने प्रति लगाव ख़त्म कर देता है। क्योंकि अगर हम खुद से किए वादे, खुद की बात को ही ना रख पाए तो हम संतुष्ट नही हो सकते और जब हम संतुष्ट नही, तो कोई और हमसे संतुष्ट कैसे होगा? हा ये करना आसन नही होगा, पर अपने लिए सोचना हर बार स्वार्थी होना नही होता जब तक हम अपने लिए किसी और का बुरा ना सोच रहे हो। अपने लिए, अपने सपनों के लिए, लड़ना भी हमारी ज़िम्मेदारी है और हमारी प्राथमिकता भी।
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