sauRabh R Rajpoot   (Saurabh R Rajpoot)
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Joined 2 June 2017


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Joined 2 June 2017
26 JAN 2022 AT 20:09

मैंनें
प्रेम के अलावा कुछ जाना ही नहीं ।
असमय बत्ती के गुल हो जाने में भी प्रेम दिखता है,
हो सकता किसी दीपक से मिलने
गयी हो ।

सूरज के न निकलने में भी
प्रेम दिखता है,
हो सकता किसी छाया से मिलने गया हो ।

- Saurabh R Rajpoot

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31 OCT 2021 AT 12:37

मैं शुरू के सुर से शुरू होऊँ और सुरों का ताँता लगा दूँ । सुरों की आवृतियों के आनंद में डूबे तुम्हारे मन से मेरा मन जुड़ जाए एक सरगम बनकर ।
- Saurabh R Rajpoot

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19 OCT 2021 AT 13:36

प्रेम 'कब', 'क्यों', 'कैसे' जैसे सवालों के जवाबों के बिना एक विज्ञान है। प्रेम किसी निश्चित सूत्र और प्रमेय से रहित एक गणित है ।
- Saurabh R Rajpoot

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10 OCT 2021 AT 21:31

मैं ठहरा नहीं हूँ, लेकिन नदी भी नहीं हूँ ।
सोने में जागता हूँ, जागने में सोता हूँ । अक्सर मैं जान नहीं पाता कौन सामने से निकल गया, अक्सर मैं सुन नहीं पाता बगल वाले इंसान ने क्या कहा । मैं आँखों को समंदर मानता हूँ । मैं पलकों के साहिल पर खड़ा होके समंदर की जवानी देखना चाहता हूँ । मैं सोने के बाद सपनों के जहाज में बैठकर आँखों के समंदर का उतार चढ़ाव देखना चाहता हूँ । समंदर के ना कहने पर मैं उससे कहूँगा मैं नदी हूँ । मैं तुम्हारे सूर्य की एक बहुत महीन रोशनी हूँ । मुझे मिला लो खुद में । ठीक वैसे ही जैसे बंदर एक छत से दूसरी छत पर कूदने से पहले अपने बच्चे को चिपका लेता है पेट से और उन कुछ पलों के लिए दोनों के शरीरांतरों का विलोप हो जाता है ।
तुम कितने भी पूर्ण क्यूँ न हो मेरे अंश भर की रोशनी के बिना अपूर्ण ही रहोगे । तब शायद समंदर पलकों के साहिल को मोर बनने को कहेगा और सपनों को पानी के फलदार बादल। तब वह और गहराएगा और अपनी मोम की सी कोमल, कपूर की सी महकती लहरों से मेरी इलायची सी लहरों को चूम लेगा । और मेरे सोते हुए होंठो पर मछलियों की परियाँ तैर उठेंगी ।

- Saurabh R Rajpoot

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28 SEP 2021 AT 21:05

पेड़, पौधे, टहनियाँ, पत्तियाँ, कोपलें और घोंसले सब गुलाबी हो जाते हैं जब तुम्हारी बात करता हूँ ।

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18 SEP 2021 AT 21:37

प्रेम आत्मा का भोजन है जो हमारे व्यक्तित्व में संतुष्टि की उन्नति और तमाम विकारों की अवनति करता है ।

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18 SEP 2021 AT 21:20

जबरन तुमसे कुछ नहीं चाहता हूँ,
लेकिन मेरा मन चाहता है कि
तुम चाहो मुझे ।

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13 SEP 2021 AT 1:04

मृत्यु एक स्थायी अवसान, एक उभयनिष्ठ गन्तव्य, एक अवश्यम्भावी अवस्था, एक ट्रैफिक सिग्नल जहाँ पर सबको रुकना होता है । और इस सिग्नल तक पहुँचने से पहले प्रेम एक ऐसा रास्ता होता है जो जीवन के सफर को सुगम, सुंदर और सरल बनाता है ।

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14 JUL 2021 AT 22:05

सोचता हूँ किताबों से हटकर कभी तो
तुम मेरे पास हो, कभी तो तुम मेरे साथ हो,
कभी तो हम दोनों साथ हो ।
किताबों के पन्नों की खुशबू से निकलकर
तुम्हारी खुशबू से अपनी देह को घेर लूँ ।
सोचता हूँ ये इंतेज़ार के जाल काश जल्द कट जाएं
हमारी परछाइयाँ मिलें, मिलके एक हो जाएं ।
मैं तुम्हारे पास बहुत पास बैठूँ
तुम्हारी हथेलियों पे अपनी हथेली रख दूँ ।
तुम्हारे बालों के सुंदरवन में
अपनी उँगलियों के हिरन दौड़ाऊँ ।
सोचता हूँ कभी मिलो
मैं सुनता रहूँ तुम कुछ भी बोलो ।
अपनी ज्ञानेन्द्रियों का इस्तेमाल करूँ
तुमको तंग करने में, तुमको हँसाने में,
तुमको अपने करीब लाने में
और फिर धीरे से पीछे से
तुम्हारे कंधे पर अपनी ठोड़ी टिका दूँ
और तुम्हारे कानों के जरिए तुम्हारे हृदय में
उतर जाऊँ ये कहते हुए कि -
"हम तुम्हें बहुत चाहते हैं,
हमें तुम बहुत अच्छी लगती हो,
हमें बहुत प्रेम है तुमसे
और तुम हमेशा मेरे पास रहना..."
-- Saurabh R Rajpoot

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9 APR 2021 AT 14:06

तुम्हारी आँखों में मैं कई रंग देखता हूँ
कहीं भी होऊँ खुद को तुम्हारे संग देखता हूँ ।
आँखों में भरके तारे जमीं पे आसमां देखता हूँ
फूलों में तुम्हारा रंग, शहद में तुम्हारी मिठास देखता हूँ ।
- Saurabh R Rajpoot

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