करे क्या क्या नहीं
ये कभी कभी समझ नहीं आता
हो जाता है बहुत कुछ कभी कभी वो
जो होना नहीं चाहता-
मेरे शब्द मेरे विचार हैं,
पूरी न सही पर मेरी थोड़ी पहचान हैं।
करे क्या क्या नहीं
ये कभी कभी समझ नहीं आता
हो जाता है बहुत कुछ कभी कभी वो
जो होना नहीं चाहता-
माना कि कोई वास्ता नहीं है
उनको हमारे वास्ते
मगर क्या कोई वास्ता नहीं है
उनका अब इंसानियत के वास्ते-
बिना बुनियाद के ये जो घर बन रहे हैं
क्या हर्श होगा जब ये गिरेंगे-
अक्सर लोग वो भी खूब होते हैं
कहते नहीं है जो वो खुद से कहते हैं
इतने में ही वो खुश रहते हैं-
समझदार आदमी मूर्खों की बातों को सुनकर
मुस्कुरा देता हैं क्योंकि वो जानता है कि
इनके पास जो तर्क हैं वो एक झूठ हैं-