DokSaw   (DokSaw)
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Joined 12 July 2017


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Joined 12 July 2017
29 JAN 2022 AT 2:26

रहे जहाँ में चर्चे
बेशुमार जिसके
मिला प्यासा ना कोई
ताउम्र उस सा,

रहा कितना मज़बूर वो
रही कितनी दरारें उसमें,
रख जागीरों की कतार अपनी
रहा ज़र्रे ज़र्रे का मोहताज वो,

उसके बेशकीमती लिबास
ढकते रूह के छाले,
उसकी वजाय मशरूफियां भी
परे नज़रें-आवाम ही..— % &

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30 NOV 2021 AT 0:34

मुझे बे-रूह करने की
आज हुई हैं सारी रश्में,
फिर हुआ वो गैर-अमानत
आज दुल्हन की लिबास में..

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2 NOV 2021 AT 19:34

आज देकर दलीलें तेरे ख़िलाफ़,
फिर से तेरे हक़ में फैसला दिया है मैंने..

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23 OCT 2021 AT 4:00

तेरी इज़ाजत हो तो एक नज़्म में
कभी लिख दूँ मैं नाम तेरा,
लिख दूँ तू शख्स कितना हसीन
और था मैं शख्स ही बुरा..

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23 OCT 2021 AT 3:29

बदकिस्मत हो तुम
अगर तुम्हें इश्क़ मिला ही नहीं,
फिर भी खुशनसीब हो उनसे
जिन्हें इश्क़ हुआ ही नहीं..

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23 OCT 2021 AT 3:18

तब उसे देखा तक नहीं था तूने पलट कर,
अब जिसकी तस्वीरों से तू करता है बातें घंटों..

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23 OCT 2021 AT 2:37

या तो याद नहीं मुझे
क्या है मोहब्बत,
या भूल ही नहीं रहा
क्या है मोहब्बत..

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23 OCT 2021 AT 2:25

कैद उनके दुपट्टों में,
होगी कितनों की आज़ादी,

उनकी बिंदिया कंगन झुमके से
होगी निकली कितनी नज्में..

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13 OCT 2021 AT 1:14

कितना ज़ायज़ है
किसी एक कि अमानत बनकर
दूसरे के ख्वाबों में आना,

कितना ज़ायज़ है
किसी एक की ज़िंदगी बनकर
दूसरे का ख्वाब हो जाना..

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30 SEP 2021 AT 22:40

एक मोहब्बत है जो किसी की हुई नहीं,
एक दिल है जो ना जाने यह मानेगा कब...

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