तुमसे थोड़ी चाहतों की दरकार भी पूरी न हुई।
हमनें अपने दिल को ख्वाइशों का गला, घुटते देखा है।।
तुम तो करते थे शिकायतें भी हर वक़्त।
हमनें दिल को गलतियां तुम्हारी, नजरअंदाज करते देखा है।।
हर कसूर तुम्हारा खुद पर ले लेते थे।
हर बार तुम्हारे आगे अपने दिल को, बनते मजबूर देखा है।।
कितने पागल से थे ना हम।
रोता रहा दिल और आइने में खुद को, मुस्कुराते देखा है।।
जानते हो हर बार कोशिश की है की भूल से भी नही याद करेंगे अब तुम्हें।
पर हर बार तेरी यादों के आगे, खुद को हारते देखा है।।
चलो फिर एक झूठी कोशिश करते हैं भूलने की तुम्हें।
तुमपर मरते मरते की हमनें, खुद को मरते देखा है।।
नही आदत है राज़-ऐ-दिल बताने की हमें।
आँखों में झिलमिल अश्क छुपाए, खुद को समझाते देखा है।।
किसी के झूठ में किसी और को जलते देखा है।
भरोसे की नींव पर हमनें, अरमानों को टूटते देखा है।।
- © एक_स्याही(कलश)✍