कह रही ये अश्रुधारा, जग ने है मुझको नकारा
पर मुझे परवाह नहीं है, लूँगा मैं एक दिन किनारा
शलभों की वृत्ति यही है, तीमिर में वो रह ना पाते
मन की तम को साथ लेकर, लौ में हैं वो कूद जाते
कह पवन से पंखुड़ी, खुद की मलय को उत्कलाते
है पता झड़ जाना जबकि, और फिर वो झड़ ही जाते
जिनपे ही निगाहें टिकी थी, वो लिए कब का किनारा
असहाय खुद ही थे जो, उसने ही मुझको सँवारा
देख ये कैसे कहें, कौन है किसका सहारा
कह रही ये अश्रुधारा......
- 'अमलतास' ©SHREEH