लम्बा सफर है ज़िन्दगी का ,रास्ते सिफ़र पे खत्म हैं ,दुश्वार इन राहगुज़र पर,मैं खुद का राहनुमा हूँ ,मैं चलता जाऊँगा राह में ,मैं इक कारवाँ बना दूँगा !मैं बोल पड़ा जिस दिन ,मैं सब जज़्बात बहा दूँगा !(पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें 👇 !) - Satvik Ranaday
लम्बा सफर है ज़िन्दगी का ,रास्ते सिफ़र पे खत्म हैं ,दुश्वार इन राहगुज़र पर,मैं खुद का राहनुमा हूँ ,मैं चलता जाऊँगा राह में ,मैं इक कारवाँ बना दूँगा !मैं बोल पड़ा जिस दिन ,मैं सब जज़्बात बहा दूँगा !(पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें 👇 !)
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