6 APR 2018 AT 23:40

लम्बा सफर है ज़िन्दगी का ,रास्ते सिफ़र पे खत्म हैं ,
दुश्वार इन राहगुज़र पर,मैं खुद का राहनुमा हूँ ,
मैं चलता जाऊँगा राह में ,मैं इक कारवाँ बना दूँगा !
मैं बोल पड़ा जिस दिन ,मैं सब जज़्बात बहा दूँगा !

(पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें 👇 !)


- Satvik Ranaday