Sarvesh Shukla  
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ओ मेरे हमसफ़र मै तो ख़ाक हूँ तेरे बिना ।।।
Joined 1 April 2018


ओ मेरे हमसफ़र मै तो ख़ाक हूँ तेरे बिना ।।।
Joined 1 April 2018
15 JUL 2021 AT 8:42

खोए खोए से रहते हैं हम अब आज कल हम हम नहीं।

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20 FEB 2021 AT 15:46

Itni badi duniya me kitni nayab ho tum kya kahe kaise kahe ki kitni khas ho tum❤

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12 DEC 2020 AT 0:46

न जाने क्या है खता उसे सायद याद है,
मैं भूल गया पर उसे नागवार है।
न जाने क्या है खता.....
किसी ज़माने में शायद हुई थी मोहब्बत ,
मैंने सजदा किया उसी का सर पर दाग है।।
न जाने क्या है खता .......
वो हुई इस जहाँ की मल्लिका,
पर दिल अब भी उसका तलबगार है।
न जाने क्या है खता......

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11 DEC 2020 AT 23:52

सताना ही है तो लुभाते ही क्यूँ हो,
जब रुलाना ही है तो हँसाते ही क्यूँ हो।।
जब जाना ही है तो फिर आते ही क्यूँ हो,
जब भरोसा नहीं तो आजमाते ही क्यूँ हो????

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18 NOV 2020 AT 1:03

आवाज़ों मे होठों पर कांपते हुए रिश्ते,
किसे कहें अपने और किन्हें पराये।
दिवाली पर पेड़ों पर लटकी हुई झालरें,
बुझे हुए दिए अब भला कौन जलाये ।।

कपड़ों के दम पर लगाए जाते हैं हैसियत के अंदाज़े,
रिश्तों के कीमत अब किसे-कौन समझाये।
अब हर छोटे जश्न में सजा दी जाती हैं महफिलें,
घर में भला चूल्हा अब कौन जलाये।।


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16 NOV 2020 AT 23:37

क्या कहूँ मैं तुम्हें कि एक शिकायत सी है,
न न तुमसे नहीं खुद से एक बगावत सी है।
हर लहजे, हर जुबान में चाहा इज़हार करना,
मगर कुछ भी न कह पाने की बीमारी सी है।।

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28 AUG 2020 AT 3:34

बहुत वक्त लगी महेर्बा तुम आये तो ,
कुछ भी नही है दिल में जो कुछ भी था तुम्हे सुनाये तो।
वो तुम्हारी यादें अभी भी जिन्दा हैं उसी रूप में,
क्या फ़र्क पड़ता है हम अगर तुम्हारे याद में आँशू बहायें तो।।

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19 AUG 2020 AT 0:47

मै छोटा सा हूँ एक छोटे शहर का,
बड़े लोगों की महफिल बेगानी सी लगती है।
खामियों को अपने मिटाने की कोशिश,
देखते-देखते खाइयों सी लगती हैं।।
बड़े छोटे देखे हैं मैने बड़े-बड़े लोगों को,
छोटे-छोटे लोगों में मुझे बड़प्पन दिखती है।।
ये असर्फ़ी,ये मोहरें ,मिनारों का क्या है,
ये गाड़ी ,ये दौलत ,दिवारों का क्या है।
बस इज्जत की प्यासी है दिलों की मोहब्बत,
दो दिलों के रिस्तों में दिखावे का क्या है।।


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2 MAY 2020 AT 14:02

आज कल हर शख़्स की गुफ्त्गू से लड़ाई सी है,
लगता है इस शहर को एक नई बीमारी सी है।
किसी के बारे में कुछ थोड़ा-बहुत सुन लेना,
फिर उस अध्सुनी बातों को अपना अलग ही रंग देना।।
ये आज कल कुछ लोगों मे खानदानी सी हो गई है,
आज कल हर शहर को ये बीमारी सी हो गई है।।।



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30 APR 2020 AT 0:41

आवारगी तुम्हारे प्यार की,
और गुलामी तुम्हारे इन्तज़ार की।
बेवजह सुलगती ये शामें,
हाय ये बौछारें बरसात की।।

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