समेटे था जिगर जिसका ज़माने भर की आग,
ऐ ख़ुदा, क्यों वो खुदको सुखा रहा है!
मन की दीवार का दर्द दिखाती जो दरख्तें,
ऐ ख़ुदा, क्यों वो उनको छुपा रहा है!!
नेमतें दस जहानों की पड़ी थी उस बेतरतीब कोने में,
ऐ ख़ुदा, क्यों फिर वो खुदको सता रहा है!
हीरो के ढेर पर बैठा वो मासूम परिंदा,
ऐ ख़ुदा, क्यों रद्दी पे दांव लगा रहा है!!
हौसलों के हौसले हलाल जो करदे,
ऐ ख़ुदा, क्यों वो आज गश खा रहा है!
ऊंचाईयां जिसका गहना थी, तरक्की जिसकी वांदी,
ऐ ख़ुदा, जाने क्यों हर कदम भरमा रहा है!!
दुनियादारी को समेट जेब में सिलने वाले,
तेरे हुनर को किस हाट की गरज आई,
आसमान में भले घनघोर घट जाए घटा,
सिकंदर के मुकद्दर में थी कब लरज आई?
कनक बनकर जो निकला आग से तपकर निरंतर,
ऐ ख़ुदा, क्यों वो आज झुलसा जा रहा है?
खुशियों की खुशबू समेटे था जो गुलदस्ता,
ऐ ख़ुदा, क्यों वो आज मुरझा रहा है?
वो उठकर दौड़ेगा, हर मंजिल पहुंचेगा,
भीतर की ज्वाला का रास्ता वो मोड़ेगा!
न बनेगा वो चिता, चरित्र, चित्त को चलाएगा,
कल को खुद पर छोड़, आज आंधियां बनाएगा!!
तूफानों से टकराने की कुब्बत थी जिसकी,
ऐ खुदा, क्यों आज वो बिखरा पड़ा है?
शायद अकेलापन उसे झकझोरता या खा गया,
ऐ खुदा, आख़िर क्यों रस्ते वो उलझ गया है?
चित्त की ज्वाला जिए, जज़्बात की रौ में बहे,
ऐ खुदा, आख़िर क्यों वो गुमसुम हो गया है?
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