Sarthak Saxena   (सार्थक सक्सेना)
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Joined 16 April 2018


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7 FEB AT 3:13

मरीज़ हूं तेरे साथ का, तू कर शिफा मेरा साथ दे!
है दोस्ती सौदा नहीं जो एक हाथ ले एक हाथ दे!!

तेरे साथ थे जो दिन जिए, हर तीर तरकश में लिए!
क्षण एक क्षण यादगार था, दुनिया से थे रंजिश लिए!!
लौटा मुझे वो पल सभी, मेरी हर घड़ी का हिसाब दे!
है दोस्ती सौदा नहीं जो एक हाथ ले एक हाथ दे!!

तेरा ज़िक्र मेरे सामने कर देखते चेहरा मेरा!
मेरी आंख नम हो बता रही, के ज़ख्म है गहरा मेरा!!
मेरी आंख का वो सुकून अभी है कहां तू उसका हिसाब दे!
है दोस्ती सौदा नहीं जो एक हाथ ले एक हाथ दे!!

मेरी बेबसी की मिसाल दे, तू सत तिरोहित कर रहा !
मेरा सेहरा भी क्यू आज तेरी दास्तां सुन जल रहा!!
मेरी हर खुशी में क्यों तू कारण है दुखों का हिसाब दे!
है दोस्ती सौदा नहीं जो एक हाथ ले एक हाथ दे!!

हर एक क़दम एक पड़ाव था, था साथ में खुशियां लिए!
वो एक ज़माना था हमारा, हर एक जमान रोशन किए!!
हूं आज भी तेरी आस में, मेरे हाथ में तेरा हाथ दे!
है दोस्ती सौदा नहीं जो एक हाथ ले एक हाथ दे!!

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4 FEB AT 17:07

यूं कुरेद कर ज़ख्म सुनो नासूर हमें क्यों देती हो?
तुमतो बनती मलहम मेरा फिर दुनिया चाहे जैसी हो!

दुनिया की सारी बंदिश तो अदनी थी तेरी सोहबत में!
तू तो जैसे शुक्र खुदा का काफ़िर जैसी तोहमत मैं!
मुझ पर काफ़िर होने के इल्ज़ाम लगाना है आसान,
तुमतो मेरा खुदा थी, हो फिर दुनिया चाहे जैसी हो!

ठेल नमक के गोदामों में ज़ख्मों का उपहास किया!
मेरी बृहद वेदना का क्यों यूं तुमने परिहास किया?
दुनियावाले मल सकते है नमक मेरे इन ज़ख्मों पर,
तुम तो बनती ढाल मेरी फिर दुनिया चाहे जैसी हो!

नफ़रत के बाजारों में मेरी पाक मुहब्बत दफना दी!
हुई नीलामी कौड़ी में जो बेशकीमती सपना थी!
दुनिया ने समझा अय्यारी पाकीजा से रिश्ते को,
तुममें तो न थी अय्यारी फिर दुनिया चाहे जैसी हो!

वादें, यादें, और हदें सबसे ऊपर जो रिश्ता था,
बारीकी से सिला हुआ जज्बाती एक गुजिश्ता था,
खेल समझ तुमने खेला मेरे लतीफ़ जज्बातों से,
तुम तो रहती तुम जैसी फिर दुनिया चाहे जैसी हो!

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4 FEB AT 1:50

तेरे हाथों में खंज़र, माथे की शिकन देख,
होंठों पर गाली और आँखों में तपन देख,
हुआ काफ़ूर साथ जो, बना है यलगार वो,
अपना था प्यार जो, बना अब अय्यार वो,
बदलता देखकर यूँ किरदार तेरा,
तू क्या जाने किस क़दर उड़ रहा मज़ाक मेरा,
कहती है दुनिया क्या पैग़ाम दिया है,
जिस्म और जान ने जमाना बाँट लिया है,
तूँ ही बता,
यूँ हाथों में क्यों खंज़र ये उठा रखा है?
इतना ग़ुस्सा क्यों माथे पे यूँ सज़ा रखा है?
जिन आँखों में चमक रहती थी हरदम ए हमदम,
क्यों उन आँखों में अब सैलाब बसा रखा है?
मुस्कुराहट सजी रहती थी जिस चेहरे पर,
नाराज़गी में क्यों वो मेहताब छुपा रखा है?
क्यों है तू चीख़ता कमबख्त दुनियादारी में?
मुझे तो बता, क्यों सबमे कोहराम मचा रखा है?
उदास है, नाराज़ है, जो है बता तो दे,
तेरा मेरा मसला है क्यों दुनिया को फंसा रखा है?
मेरा क़त्ल करना है तो करदे मग़र करना अकेले में
ज़माने को तुझे मैंने मेरी जान बता रखा है!

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3 FEB AT 4:29

छुपा रखा था किसी कोने में एक गुलाब,
कर जमींदोज क्यों उसका राज़ बना रखा है!
यूं ठुकराकर ज़माने भर की नेमतों को,
क्यों एक पत्थर से अपना ताज सजा रखा है!

ज़माने की गरज मुझको नही पर तुझको तब थी,
यूं चंद अल्फाजों में सिमटी हमारी उम्र कब थी,
मुहब्बत की वो तिदरी आज भी पहरे में उलझी,
क्यों दिल की तितलियों को पिंजड़े में समा रखा है!

मेरे दिल के हर एक कोने में जो तस्वीर समाई है,
मेरा है जिस्म जिसके साथ तेरी परछाई है,
तुझसे नज़दीक नहीं कोई मेरे तुझको ख़बर है,
क्यों फिर भी तूने यूं मेरा दिल दुःखा रखा है!

सज़ा काटूंगा जो तुझको किया रुसवा मैंने,
सहूँगा दण्ड हर एक जो किया शिकवा मैंने,
तुझे एहसास है बसती तेरी धड़कन मेरे दिल में,
क्यों फिर भी तूने पहरा धड़कन पर बिठा रखा है!

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25 JAN AT 3:59

तेरे हाथों में खंज़र, माथे की शिकन देख,
होंठों पर गाली और आँखों में तपन देख,
हुआ काफ़ूर साथ जो, बना है यलगार वो,
अपना था प्यार जो, बना तू अय्यार वो,
बदलता देखकर यूँ किरदार तेरा,
तू क्या जाने किस क़दर उड़ रहा मज़ाक मेरा,
कहती है दुनिया क्या पैग़ाम दिया है,
दोस्तों ने दोस्ती को बाँट लिया है,
तूँ ही बता,
यूँ हाथों में क्यों खंज़र ये उठा रखा है?
इतना ग़ुस्सा क्यों माथे पे यूँ सज़ा रखा है?
जिन आँखों में चमक रहती थी हरदम ए हमदम,
क्यों उन आँखों में अब सैलाब बसा रखा है?
मुस्कुराहट सजी रहती थी जिस चेहरे पर,
नाराज़गी में क्यों वो मेहताब छुपा रखा है?
क्यों है तू चीख़ता कमबख्त दुनियादारी में?
मुझे तो बता, क्यों सबमे कोहराम मचा रखा है?
उदास है, नाराज़ है, जो है बता तो दे,
तेरा मेरा मसला है क्यों दुनिया को फंसा रखा है?
मेरा क़त्ल करना है तो करदे मग़र करना अकेले में
ज़माने को तुझे मैंने मेरी जान बता रखा है!

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5 JAN AT 3:12

वो ढूँढते रहे मेरी आंखों में आंसू,
अफ़सोस कि उसने मेरी लिखावट नहीं देखी!

वो परखते रहे मेरे किरदार को,
अफ़सोस कि उसने मेरी चाहत नहीं देखी!

वो खुश थे की हम करते थे इंतजार,
अफ़सोस कि इन आंखों में वो थकावट नहीं देखी!

जो कहते थे कि रहेंगे साथ ताउम्र,
अफ़सोस कि मेरे जाने की आहट नहीं देखी!

वो तलाशते रहे हमें उस भीड़ में,
अफ़सोस कि उसने जनाज़े की आवक नहीं देखी!

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1 DEC 2023 AT 2:43

समेटे था जिगर जिसका ज़माने भर की आग,
ऐ ख़ुदा, क्यों वो खुदको सुखा रहा है!
मन की दीवार का दर्द दिखाती जो दरख्तें,
ऐ ख़ुदा, क्यों वो उनको छुपा रहा है!!
नेमतें दस जहानों की पड़ी थी उस बेतरतीब कोने में,
ऐ ख़ुदा, क्यों फिर वो खुदको सता रहा है!
हीरो के ढेर पर बैठा वो मासूम परिंदा,
ऐ ख़ुदा, क्यों रद्दी पे दांव लगा रहा है!!
हौसलों के हौसले हलाल जो करदे,
ऐ ख़ुदा, क्यों वो आज गश खा रहा है!
ऊंचाईयां जिसका गहना थी, तरक्की जिसकी वांदी,
ऐ ख़ुदा, जाने क्यों हर कदम भरमा रहा है!!
दुनियादारी को समेट जेब में सिलने वाले,
तेरे हुनर को किस हाट की गरज आई,
आसमान में भले घनघोर घट जाए घटा,
सिकंदर के मुकद्दर में थी कब लरज आई?
कनक बनकर जो निकला आग से तपकर निरंतर,
ऐ ख़ुदा, क्यों वो आज झुलसा जा रहा है?
खुशियों की खुशबू समेटे था जो गुलदस्ता,
ऐ ख़ुदा, क्यों वो आज मुरझा रहा है?
वो उठकर दौड़ेगा, हर मंजिल पहुंचेगा,
भीतर की ज्वाला का रास्ता वो मोड़ेगा!
न बनेगा वो चिता, चरित्र, चित्त को चलाएगा,
कल को खुद पर छोड़, आज आंधियां बनाएगा!!
तूफानों से टकराने की कुब्बत थी जिसकी,
ऐ खुदा, क्यों आज वो बिखरा पड़ा है?
शायद अकेलापन उसे झकझोरता या खा गया,
ऐ खुदा, आख़िर क्यों रस्ते वो उलझ गया है?
चित्त की ज्वाला जिए, जज़्बात की रौ में बहे,
ऐ खुदा, आख़िर क्यों वो गुमसुम हो गया है?

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27 NOV 2023 AT 1:00

गर तेरा दिल दुखाया मैंने तो सज़ा दे,
जो हुई तेरी आंख नम तो बता दे!
मेरे दिल में तो बसती है तेरी धड़कन,
कहां गई मेरी धड़कन मुझे पता दे!!

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4 SEP 2023 AT 10:33

तूर्य के सुर स्वप्न से संचित किए,
रक्तरंजित रश्मियों के द्वीप से रचित किए!
प्रज्वलित नीलम वर्ण सा बह रहा,
सूर्य प्रति पल क्षितिज पर मंचित किए!!

लौट आई लालिमा जो तेज़ में धुंधला गई थी,
उषा तक जो साथ थी पर बीच में सकुचा गई थी!
कालिमा के स्रोत को भंजित किए,
तुर्य के सुर स्वप्न से संचित किए!!

लौट निकले ठौर को भोर निकले थे कमाने,
वापसी करने लगे वो पक्षी जो निकले थे खाने!
चोंच में भोजन विहग अर्जित किए,
तुर्य के सुर स्वप्न से संचित किए!!

शून्य बनकर जो सुबह निकली सफ़र पर अज्ञ है वो,
वापसी की दौड़ में दुनिया चली अब विज्ञ है वो!
अनुभवों के तीर तरकश में लिए,
तुर्य के सुर स्वप्न से संचित किए!!

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20 AUG 2023 AT 18:56

सबके हिस्से में तेरा वक्त आया,
मुझे मिली तो बस तेरी लाचारी!
सबको बांटी तूने नेमतें जहां की,
मेरे ही हिस्से क्यों आई बेगारी!!

तेरी मेहरबानियों का कायल है ज़माना सारा,
मेरा दिल क्यों फिर घायल है बताना यारा!
ज़माने से कब कहेगी तू कहानी हमारी?
सबको बांटी तूने नेमतें जहां की,
मेरे ही हिस्से क्यों आई बेगारी!!

तेरी बेगारी कर भी तुझे न छोड़ा कभी,
नज़र हम पर भी रख, तेरे ध्यान में तो है सभी!
हम ही कब तक समझें लाचारी तुम्हारी?
सबको बांटी तूने नेमतें जहां की,
मेरे ही हिस्से क्यों आई बेगारी!!

माना हक था तेरे वक्त पर सभी का,
दे तो सकती थी एक हिस्सा कहीं का!
कब तक करें हम यूं तेरी कहारी?
सबको बांटी तूने नेमतें जहां की,
मेरे ही हिस्से क्यों आई बेगारी!!

सबके हिस्से में तेरा वक्त आया,
मुझे मिली तो बस तेरी लाचारी!!

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