कुछ मन को समझा लेता। लेकिन क्या करूं यह मन भी तो तेरा ही है। इसे परेशान भी तो नहीं कर सकता ।चल अपने दिल को भी समझा लेता ।लेकिन यह दिल भी तो तेरा है इसे रुला भी तो नहीं सकता । चल अपने अल्फाजों को भी मैं छुपा लूं। लेकिन क्या करूं ये अल्फाज भी तो तेरे हैं इन्हें गवा भी तो नहीं सकता ।चल अपने कदमों को तुझ तक आने से रोक दूँ। लेकिन क्या करूं कदम भी तो तेरी ओर ही आते है। चल अपनी ख्वाहिशों को भी मुकम्मल न करूँ।लेकिन क्या करू ये ख्वाहिशें भी तो तुझे पाने की है।चल छाेड़ सारी खाताएं अब बापस आजा और दुआ करे अपनी ख्वाहिशो को दूजे के नाम करें।चल एक दूजे के कन्धें पर सर रखकर सारी खताओं को माफ करें।चल अब आजा वापस दोनों अपनी मोहब्बत का एक दूजे से इजहार करें।और सब कुछ भूलाकर एक दूजे की रूह को अपने नाम करे। और वादा करें कभी एक दूजे को छोड़कर न जाए।।
- विकल कवि