किसी की एक पल में कमाई जागीर हूं में,
किसी बेरंग दीवार का अबीर हूं मैं,
फिर ना लौटनेवाले लम्हों का शरीर हूं में,
किसी के बेलफ़्ज ज़िन्दगी का कबीर हूं मैं,
किसी बेबाम आशिक़ की हीर हूं मैं,
किसी फकीर के झोली में रखा हुआ पीर हूं मैं,
किसी निर्वात उम्मीद का समीर हूं मैं,
हज़ारों सपनों को, लाखों मुस्कानों को,
खुशियों के पैमानों को, दबे हुए अरमानों को
एक कागज़ पर समेटे खड़ी तस्वीर हूं में।
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