Santosh Jha   (The_Penned_Heart)
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कहानियां , क़िस्से , कविताये और मैं
Joined 8 August 2017


कहानियां , क़िस्से , कविताये और मैं
Joined 8 August 2017
15 MAR AT 11:27

ऐसा कितनी बार होता है कि हम रात में अपने बिस्तर पर पड़े-पड़े ये सोचते हैं कि काश इस शाम की कोई सुबह ही न हो, अब जो सोये फिर उठे ही ना। बस यही कहानी समाप्त हो जाए, यही तक मेरा पात्र बस जीना चाहता हूँ अब और नहीं। (Read in Caption)

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28 FEB AT 17:59

तू यू अब ख़ुद से नजरें ना चुरा,
जो बीत गयी उस बात को हटा ।
गर भूलना है तो सबकुछ भूल,
यूं कभीं हाँ कभीं ना में ख़ुद को ना उलझा ।
कर ले वादा ख़ुद से एक आख़िरी बार
दोबारा नहीं सतायेगी ख़ुद को यूँ बार बार ।
क्यों रखना हर वो पुरानी तस्वीर वो सारे कवितायें
इन सबसे ख़ुद को आज़ाद कर
नहीं तो फिर ख़ुद को पाओगी इसी दौराहे पर
फिर ख़ुद से नज़रे चुराते हुए, फिर ख़ुद को रुलाते हुए

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27 FEB AT 18:16

जब भी तुम खुद को खोया सा पाओगी,
मुझको तुम खुद के उतना ही करीब ले आओगी।
मैं रहूँ या ना रहूँ, तुम्हारे दरबदर
तुम जब भी पलकें झुकाओगी, मेरा ही चेहरा सामने पाओगी।

वो बनारस की गलियाँ, वो मणिकर्णिका घाट
याद है कैसे बिताई थी वो पल, डाले हाथों में हाथ।
वो भीड़-भाड़ वाले चौराहे, वो तैरतें नौकाये
ठहरता समय भी जैसे दे रहा हो इस मोहब्बत का साथ।

वो गंगा आरती पर खाई कस्में
वो मांगी गईं सारी रस्में।
वो दिनभर की भागदौड़
याद है कैसे छिपकली को देखकर मचाया था तुमने कितना शोर।

वो घाट पर घंटों बिताना
वो दूर पंछियों को बस टकते जाना
वो पानी को छू कर बस लौट आना
हाथों में हाथ थमे, बस समय में कहीं खो जाना।

अब तुम कहोगी कि ये सब मुझको अब क्यों याद दिला रहे हो
जो था वो बीत गया, ये सब दोहराकर मेरा दिल अब क्यों बहला रहे हो
और मैं कहूँगा कि ये सब हम फिर कभी दोहराएंगे
उस बार किस्सों कहानियों में नहीं, सच में साथ ले जाएंगे।

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26 FEB AT 16:13

मैंने लिखना छोड दिया, या कहे तो लेखन ने मुझे छोड दिया है,
ये कुछ इसी प्रकार है जैसे किसी ने सवाल पूछना बंद कर दिया हो
जो सामने है, जो प्रत्यक्ष है, उसे जैसा का तस अपना लिया हो, बिना कुछ पूछे बिना कुछ जाने
बिना शिकायत के भी, बस जो है, उसे प्रत्यक्ष मानकर उसके आगे समर्पित हो गया है
मैं बहुत समय तक सोचता रहा, बहुत देर तक खुद को कीबोर्ड के सामने बेबस होते हुए देखा
इस उम्मीद में कि शायद कुछ इस बार लिख पाऊं, कुछ अपने जज़्बात बयान कर पाऊं
पर आखिर महीनों बाद आज जैसे मन लिया है, मैंने कि अब शायद ही मैं कभी कुछ लिख पाऊं
ये सुनने में कुछ अजीब लगे या फिर शायद बहुत अजीब लगे पर
पर ये मेरे लिए कुछ वैसा ही है जैसे किसी ने प्रेमिका के छोड जाने पर होता है
कम से कम उसके छोड जाने पर विरह के मारे ही हम कुछ लिख पाते हैं पर मेरी स्थिति तो अब उससे भी अजीब है
मैं जैसे रोज उस दरवाजे के आगे खटखटा हूँ और रोज बस मायूशी हाथ लगती है
इन सब के बीच में प्रश्न ये आता है कि लिखना इतना क्यों जरुरी है
नहीं लिखते करोड़ो लोग उन्हें तो नहीं होती ऐसी परेशानी नही होती कोई आकांशे फिर मुझे क्यों
शायद इसीलिए क्योंकि किताबें पढ़ना और लिखना ही है दो ऐसी चीजें हैं जिसमें खुद से सबसे ज्यादा करीब पता हूँ
ये ही दो ऐसे काम हैं जिनमें मैं अपनी ज़िंदगी में सबसे ज्यादा ईमानदार रहता हूँ, ये दो चीजें मुझे सबसे ज्यादा आनंद देती हैं।
इसीलिए शायद मैं हर रोज़ उम्मीद लेकर दरवाजे पर फिर पहुंच जाता हूँ कि शायद आज कुछ लिख पाऊं, आज हो मेरे पास कुछ कहने को, पर
पर शायद मुझे अब ये मान लेना चाहिए कि मैं उम्र या जीवन के उस मोड़ पर आ चुका हूँ कि मेरे पास कहने
को बयान करने को शायद कुछ नहीं।
लेकिन मैं हर नहीं मानूंगा, फिर से दरवाजा खटखटाऊंगा।
हर रोज़ खटखटूना, कभी तो दरवाजा खुलेगा, कभी तो मैं शायद फिर जागूंगा।
और फिर लिखूंगा कुछ पंक्तियाँ, कविताएँ या फिर कोई छोटी सी कहानी।

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25 FEB AT 13:30

क्या तुम मुझसे अभी भी प्यार करते हो?
उसने दबी आवाज़ में अपना चेहरा घुमाते हुए पूछा,
"तुम्हें क्या लगता है, तुम ही बताओ, क्या मैं करता हूँ?
क्या मालूम? अब ये सवाल भी बेईमानी सी लगती है
प्यार करना और करते रहना, क्या ये इतना आसान है?
आज तुम्हें क्या हुआ, ऐसे तुम ऐसे क्यों बात कर रही हो मैंने थोड़ा संभल कर पूछा.
यूंही, मुझे अक्सर ऐसा लगता है कि मैंने एक बार तुमसे प्यार किया और उसके बाद किसी
से नहीं कर पाई, तुम जब भी सामने आते हो मेरी आँखें उम्मीदों से बँध जाती हैं
मैं अपनी अभी की ज़िन्दगी को भूल कर फिर से तुम्हारे साथ हो जाती हूँ, चाहे वो पल भर के लिए ही क्यों न हो
मैं जब भी तुम्हें देखती हूँ तो फिर से वही मैं हो जाती हूँ पर तुम।
मैं, मैं क्या?
तुम अब वो नहीं लगते हैं, तुम्हारी आँखों में मुझे अब वो कसक नहीं लगती
ऐसा लगता है कि तुम आगे बढ़ गए हो और मैं, मैं वही खड़ी हूँ
किसी चमत्कार की उम्मीद में, वैसे उम्मीद तो खैर मुझे भगवान से भी अब नहीं।
पर तुमसे ना जाने क्यों हर बार लगा लेती हूँ, और तुम भी तो हर बार उम्मीद तोड़ जाते हो
क्या ये सब इतना आसान है? मैंने पूछा
आसान? क्या हम गणित का कोई सवाल कर रहे हैं, जो तुम आसान या मुश्किल पूछ रहे हो
इतने प्रैक्टिकल कब से हो गए तुम, तुम तो ऐसे नहीं थे, प्रैक्टिकल तो मैं थी ना पहले
तुम तो नहीं सोचते थे इतना. फिर
खैर मैं ही पागल हूँ जो तुमसे हर बार उम्मीद लगाती हूँ और तुम हर बार उसे तोड़ने से नहीं कट राते
मैं सिर झुकाए उसकी सारी बातें को इत्मिनान से सुनता रहा
जैसे मैं चाहता था कि वो बोल दे आज सारी बातें दिल की आज
और कर दे अपने आप को मुक्त इन सब बातों के भोज से जो उसने दबाए रखे थे एक अर्से से
"तुम्हें याद है हमें एक बार साथ में आइस गोला खाया था," मैंने उससे कहा
हाँ तो, उसने झल्लाते हुए कहा,
"कुछ नहीं, बस चेक कर रहा था कि कुछ अच्छी बातें भी याद हैं या बस शिकायतें बच गईं दरमियान हमारे।"
मैंने कॉफी का आखिरी सिप पीते हुए कहा और फिर
फिर हम अपने अपने रास्ते निकल हो लिए।

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23 FEB AT 20:49

डूबते, टूटते, बिखरते ये ख्वाब,
रेत सी हाथ से छूटते ये ख्वाब।
आँखों में बेबसी और दिल में थोड़ी उम्मीद,
सारी हदों को पार करते ये ख्वाब।

आग में जलते, तूफान में उड़ते,
पहाड़ों को चीरते, समुद्रों को पार करते।
हर मुश्किल से लड़ते, हर चुनौती को स्वीकार करते,
अपने लक्ष्य को पाने के लिए, हर कोशिश करते।

कभी हारते, कभी जीतते,
कभी गिरते, कभी उठते।
लेकिन कभी हार नहीं मानते,
अपने सपनों को सच करने के लिए, हमेशा आगे बढ़ते।

डूबते, टूटते, बिखरते ये ख्वाब,
लेकिन कभी मरते नहीं।
हमेशा हमारे दिल में, जिंदा रहते है ये ख्वाब।

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23 FEB AT 20:44

देखते-देखते देखो कैसे पूरा साल निकल गया,
रूठे-मनाते देखो कैसे पल भर में ये वक्त भी कट गया।

गुस्से के बादल छाए, नाराजगी ने खूब तूफान मचाया,
पर तेरी मोहब्बत की बारिश ने सबको भिगो दिया

एक साल था या एक पल, मुझे खुद भी समझ नहीं आया,
तेरे प्यार की छाँव में हर पल बस खुशियों से झिलमिलाया।

बातों में झगड़े हुए, दूरियाँ भी काफी बढ़ी,
कभी खुद मान कर, कभी खुद को मनाकर सब से पार पा लिया।

चलना है साथ-साथ, हाथों में हाथ थामे,
हर साल, हर पल, हर जन्म में, साथ ही जाये ।

तो चल, भूल जा सब गिले-शिकवे, मिटा दे हर तूफ़ान,
नया साल, नया प्यार, नई खुशियाँ मनाएं जहान।

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18 FEB AT 17:29

आज फिर वो सख़्श मेरे शहर में आया है
आज फिर मेरे दिल ने मुझे थोड़ा सा बहकाया है
आज फिर दिल और दिमाग में वही जंग जारी है
आज फिर मैंने खुद को बेबस बतलाया है

आज फिर दिन मैंने मायूशी में काटी है
आज फिर फोन देख-देख नजरें मैंने चुराई हैं
आज फिर दिल के दरवाजे पर आहट सी हुई है
आज फिर मैंने दरवाजे से खुद को बुलाया है

आज फिर उसकी याद बहुत तेज़ आई है
आज फिर उससे मिलने की बेताबी छाई है
आज फिर सब बेक़ाबू सा मलूम पड़ता है
आज फिर सब छोड़ छाड़ उससे मिलने की रुत छाई है

आज फिर मन बड़ा उदास मलूम पड़ता है
आज फिर पूरा शहर मेरे साथ रोया है
आज फिर दिल ने मुझे बहालने की साज़िश की है
आज फिर मैंने खुद से खुद को बचाने की गुज़ारिश की है

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13 FEB AT 20:11

मैं जो हूँ, मैं ख़ुद को भी नहीं भाता,
चलो ये छोड़ो कुछ नयी बात कहो ।

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27 DEC 2023 AT 12:01

मेरे बाद तुमको कोई ऐसे सताएगा क्या,
मेरे बाद कोई तुमको इतना याद आएगा क्या।
मैं रहूँ अब या ना रहूँ, ये अलग मसला है,
पर ये बताओ, मेरे बाद कोई तुम्हे मुझ जैसा चाहेगा क्या।

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