Santosh Dutt Pandey   (संतोष दत्त पांडेय)
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कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी,
कुछ मुझे भी ख़राब होना था
Joined 26 May 2017


कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी,
कुछ मुझे भी ख़राब होना था
Joined 26 May 2017
9 JUL 2023 AT 15:40

कोई भरम न रहने दो,
सारे हौसले टूट जाने दो ।

मुझे समन्दर फतह करना है
उबरने से पहले डूब जाने दो !

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31 DEC 2022 AT 23:23

खुशियों की क्या हीं बात करे
वो तो तसव्वुर में भी नहीं आते,

मुफ़लिसी में कमबख्त गम भी
मुकममल गमगीन नहीं होते !!

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14 AUG 2022 AT 21:37

इश्क़ मुकम्मल हो इसकी गुंजाइश कम है ,
समन्दर माफ़िक इसका भी ख़ात्मा नहीं होता

शादी कर के हम भी फ़ोटो अपलोड कर दे मगर ,
एक और वादाखिलाफी का हौसला नहीं होता !

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21 JUL 2022 AT 8:26

ज़िंदगी में किसी के मौजूदगी से, कुछ ऐसा फर्क आ गया है
मेरे वजूद के नदियों में, समंदर सा तूफ़ान आ गया है

शिकायत है, सुकूं है, सिद्दत है, शांत हृदय भी है
एक बस तेरे होने से, बेरंग कैनवास पर रंग आ गया है

तुम्हारे साथ चलते चलते मिल ही जायेगी मंजिल
सफर को रास्तों पर एक नया यकीन आ गया है

अंधेरे में भटकने से रोक लेती है तेरी बस एक आवाज़
तूफ़ान में डूबते मेरे सफीने को, साहिल नजर आ गया है

आंखों में चमक, चेहरे पर मुस्कान, दिल आबाद लगता है
तुझे जुल्फें संवारते देख, पतझड़ में सावन साखुमार लगता है

इक बस तेरे होने से कितना कुछ फर्क आ गया है
बेनूर सी मेरी कहानी में, तुझ जैसा खूबसूरत मोड़ आ गया है

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13 MAY 2022 AT 22:46

When nothing make sense in the light, one needs to search in dark.

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4 MAY 2022 AT 7:33

सिर्फ मैं हीं क्यों लगाऊँ,
दिल के दरवाज़े पर उदासियों का ताला ।

दुबारा इश्क तुमने भी किया,
सिर्फ मैं हीं क्यों बनूं मयखाना का रखवाला !!

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4 MAY 2022 AT 7:31

ज़िंदगी की धूप में इश्क दरख़्त की छांव है
बिना हमसफर के ये सफर पूरा होगा नहीं

सांस है, जब तक ये दिल पत्थर तो होगा नहीं
हां !तुम्हारे बाद तुम जैसा इश्क किसी से होगा नहीं

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30 APR 2022 AT 23:15

दरकार
बेचैनी उनसे मिलने की नहीं
अब उन्हें भूल जाने की है,
मेरे डूबते हुए सफीने को
साहिल नहीं, दरकार तूफान की है !

हारा नहीं मैं ज़िंदगी से
मसला मुस्किलात बढ़ाने की है,
तिनके में टूटा है दिल मेरा
ज़िंदगी नहीं, दरकार कयामत की है !!

दरख़्त की छांव बहुतेरे हैं
ज़िद धूप में सफ़र करने की है,
सफर–ए–जुनून हैं इश्क मेरा
मंजिल नहीं, दरकार नए सफर की है !

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30 APR 2022 AT 23:08

देखते–देखते देखो शाम हो गई
आने से तुम्हारे जो जाड़े की धूप खिली
अब फिर से अमावस की रात हो गई।

ज्यादा देर तक न सही, कुछ देर हीं
हंसी–ठिठोली नहीं, शांत गंभीर हीं
जाते–जाते आखिरी मुलाकात हो गई।

कुछ याद नहीं रहेगा, इस शाम के सिवा
हमारी सारी संजोई यादें अनाथ हो गई
चलता हूं! इश्क की आज अब हार हो गई !

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9 APR 2022 AT 17:46

अपने सामने देखते ही टूट कर बिखर गई मेरी बाहों में
मुझसे ज्यादा बेकरार मेरी मंज़िल थी मुझसे मिलने के लिए

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