27 JUN 2017 AT 18:19

मरता जवान ...मरता किसान ...जलता ये जहाँ है
भरी संसद में कौरवों के हाथों चिरहरण से आहत संविधान है ........

गीता सा पावन है जो ...समंदर सा गहरा है
सिसक रहा है आज किसी कोने में लगता है दिल में ज़ख़्म गहरा है
खादी पहचान बनी सत्य अहिंसा की ....आज जिसने
पहना वो लुटेरा है .....
लोकतंत्र के मंदिर में बैठे है लूटेरे,के दामन पे ये दाग़ गहरा है

ईमानदारी पे बेईमानी का पहरा है अपराधियों का यहाँ सरेआम होता वंदन है
भरी सभा में कैरवो के हाथो चिरहरण से आहत संविधान है

कुम्भकरनी नींद सोयी है सरकारें ..भूख से त्रस्त जन का रुदन क्रिंदन है
नागफनी के झाड़ पाले जा रहे ...विषधरों के लपेटें में चंदन है
भाषा की मर्यादा का किसी को भान नहीं ....आज़ादी का खुला होता उल्लंघन है
गुंडे मावलियों का अखाड़ा बनी संसद ...जहाँ भ्रष्टचारियों का होता अभिनंदन है

चरित्र है हर किसी का दाग़दार ...दागियों से ही दागियों का मौन अभिनंदन है
भरी संसद में कौरवों के हाथों चिर हरण से आहत संविधान है

देश की संप्रभुता ख़तरे में है ....मेरी अस्मिता ख़तरे में है
लोकतंत्र के रखवाले है जो उनके हाथों ही लोकतंत्र ख़तरे में है
लाल क़िले की प्राचीर से मेरी फ़रियाद सुनो ...बरसो दबाई गयी जो वो आवाज़ सुनो .....
उठो जागो ...ललकारों की मेरी और तुम्हारी दोनो की स्वतंत्रता ख़तरे में है

मिट गया जो मैं मिट जाएगा ये देश ...बचा लो मुझे हाथ जोड़ मेरा निवेदन है
भरी संसद में कौरवों के हाथों चिरहरण से आहत में संविधान है

Dr.sanjay yadav

- dr.sanjay yadav