संजय मृत्युंजय   (संजय मृत्युंजय)
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ज़िंदा दिल
Joined 30 May 2017


ज़िंदा दिल
Joined 30 May 2017

निगाहें बयां करती है हाल-ए-दिल का सबब
अफ़्सोस तुमने लबो के आगे दुनिया नहीं देखी

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एक मुद्दत से इश्क़ नहीं किया हमने
एक मुद्दत हुई शाम घर जल्दी आए

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कौन ठहरा है अज़ल से किसी के लिए
ज़िन्दगी मयस्सर कहां किसी को किसी के लिए

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आंखे बयां करती हैं उदासी का सबब
लबों के हिस्से दर्द गहरे नहीं आते

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कोई आके मुझ से जो मेरा हाल पूछता
मेरा रंज पूछता , मेरा मलाल पूछता
मै हसी-हसी में उसको सारे राज़ खोलता
तेरा ज़िक्र छेडता , तेरा नाम बोलता

क्यों ख़ाक हो गए तुम अपने गुमान में
क्यों आइने क़त्ल किए महफ़िल की शान में
क्यों मरासिम ना रहा कोई तेरा शहर में
क्यों हर शजर उजड़ गए तेरे बागबान में

जो ख़ुदा है तू तो तेरा सर झुका है क्यों
जो ज़र्रा है तो तुझसे तेरी ज़ात पूछता
पिघले तेरे हुस्न से उसका गुरूर पूछता
दिखा के आईना फिर तेरी औेकात पूछता


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साहिल पर लौट कर आवाज़ें कहाँ आती है
लहरें लौट तो जाती है सादाए कहाँ आती है
उठ कर चल दूँगा फिर किसी नए शहर की तरफ
दरिया हूँ ,मुझे किनारों से मोहब्बत कब रस आती हैं

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अपने दर्द को हथेलियों में रगड़ देती है
माँ जब बहोत रोती हैं चूड़ियां तोड़ देती है

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दो कमरों की है ये ज़िन्दगी
एक रात सो जाती है,
एक शाम निगल जाती है।

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एक मुद्दत से उसका इंतज़ार रहा दिल को
एक मुद्दत से मैं जानता था वो नहीं आने वाले

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