कोई आके मुझ से जो मेरा हाल पूछता
मेरा रंज पूछता , मेरा मलाल पूछता
मै हसी-हसी में उसको सारे राज़ खोलता
तेरा ज़िक्र छेडता , तेरा नाम बोलता
क्यों ख़ाक हो गए तुम अपने गुमान में
क्यों आइने क़त्ल किए महफ़िल की शान में
क्यों मरासिम ना रहा कोई तेरा शहर में
क्यों हर शजर उजड़ गए तेरे बागबान में
जो ख़ुदा है तू तो तेरा सर झुका है क्यों
जो ज़र्रा है तो तुझसे तेरी ज़ात पूछता
पिघले तेरे हुस्न से उसका गुरूर पूछता
दिखा के आईना फिर तेरी औेकात पूछता
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