Sandeep Yadav   (बाग़ी उड़ान)
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Joined 9 September 2017


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24 FEB 2022 AT 0:07

अब की बार जब तेरा आना होगा,
मुझ को सीने से तुझे लगाना होगा,

मुझ को रो लेने देना जी भर कर तुम,
अब भी ना रो पाया तो फिर मर जाना होगा,

मेंरे होठों को, फिर से छूना है माथा तेरा,
फिर हाथों से तेरे बालों को सहलाना होगा,

अब की आओगे तो जाने नहीं दूंगा तुम को,
तुझे रोकने को मेरा हर एक बहाना होगा,

तेरे नाम के पीछे मेरा नाम जोड़ना है मुझ को,
फिर बस तेरी गोद में बाग़ी का ठिकाना होगा !!

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24 JAN 2022 AT 12:44

जैसे हारा हो सब कुछ जीत जाने के बाद,
तुम्हें खोया है मैं ने, तुम्हें पाने के बाद !!

दूसरों की नाव से दरिया नहीं निकलते,
तैराकी सीखी मैं ने, डूब जाने के बाद !!

बड़े शौक़ से हिज्र हवाले किया जिन के,
दिल तोडा भी उस ने, तो दिल लगाने के बाद !!

एक चिट्ठी लिखी थी, एक ख़त आया है,
वो हाल पूछते हैं मेरा, मार जाने के बाद !!

खुद पट्टी करनी होगी, मरहम लगाना होगा,
बड़ी देर से समझा बाग़ी, चोट खाने के बाद !!



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5 SEP 2021 AT 15:42

आज का दिन तुझे मुबारक हो ज़िन्दगी,
तुझ से बड़ा मेरा कोई भी उस्ताद नहीं !!

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2 SEP 2021 AT 18:26


तुझ को अपने आप पर यह गुरूर कैसे बन्दे ?
यूँ हो रहा है अपनों से ही दूर कैसे बन्दे ?

पल भर में मिट जाती हैं हस्ती इस जहाँ से,
फिर तू अपनी 'शौहरत' में मग़रूर कैसे बन्दे ?

छोटी सी रस्सी जोड़े है सब की साँसों की डोर यहाँ,
फ़िर तू ख़ुद को रख पाए महसूर कैसे बन्दे ?

जो कुछ भी है तेरा, रह जाएगा सब इस दुनिया में,
फिर भी अपनी दौलत में तू मख़मूर कैसे बन्दे ?

तेरी दौलत सारी है तेरे अपनों से रिश्तों में,
कागज़ के टुकड़ों में दौलत के दस्तूर कैसे बन्दे ?

एक दिन उड़ जाएगा परिन्दा तेरी जाँ का भी,
फिर देखना तू होता सब काफ़ूर कैसे बन्दे !!






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28 MAY 2021 AT 19:08

एक अर्से बाद आज कलम उठाई है मैं ने,
बाद एक मुद्दत के उसका ख़्याल आया है ❤️

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19 MAY 2021 AT 19:47

डूबते हुए तिनके का सहारा बन कर,
कभी छूना दरिया को किनारा बन कर !!

मेरे कानों में आवाजें पहुँचती नहीं है,
मेरी आँखों में तुम बसना इशारा बन कर !!

मेरी आदत है नुकसानों का हिसाब रखने की,
ज़िंदा हो मेरी डायरी में तुम ख़सारा बन कर !!

तुम्हें अभी मालूम नहीं मोहब्बत कहते किसे हैं,
बस एक बार देखो तुम सनम हमारा बन कर !!

कुछ और बनने की ख़्वाहिश बाकी नहीं मुझे,
ख़ुश है तेरा बाग़ी बस तुम्हारा बन कर ❤️

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15 MAR 2021 AT 22:20

फिर अँधेरी रात में किताब ले कर बैठा है,
वो 'अपनों' के अपनेपन का हिसाब ले कर बैठा है !!

आँसुओं से भर चुकी है बोतलें उसके हाथ में,
दुनिया की नज़रों में शायर शराब ले कर बैठा है !!

भींग चुका है हर कोई थोड़ी बारिश की बून्दों से,
वो बाँध है, अपने पीछे सैलाब ले कर बैठा है !!

एक अर्सा बीत चुका है उसकी आँखों को बन्द हुए,
वो खुली हुई आँखों मे भी एक ख़्वाब ले कर बैठा है !!

बेमानी बाते हैं की उसके लफ़्ज़ों में सिर्फ़ मोहब्बत है,
बाग़ी क़लम की स्याही में इंकलाब ले कर बैठा है !!

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14 SEP 2020 AT 20:46

कई दिनों से भूखी औलाद
का चेहरा देख,
जैसे माँ टकटकी लगा देखती है
चौखट की तरफ़,
की कई दिनों बाद,
शायद बाप ले कर आएगा
कुछ खाने को !

कुछ उस तरह ही,
हर आहट पर ,
मैं देख लेता हूँ दरवाज़ा अपना,
कुछ उस तरह ही
मुझे इंतज़ार है तुम्हारा !!

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23 JAN 2020 AT 14:02

मैख़ाने में आ कर पूछा उस ने आदत किस को कहते हैं,
ख़ुदा के घर में कौन बताए इबादत किस को कहते हैं !!

रात भर करता रहा पहरेदारी चाँद जिसकी,
सुबह वही खिड़कियाँ बोलीं हिफाज़त किस को कहते हैं !!

जल-जल कर बुझ गया परवाना जिस की आग में,
उस शमा की लौ क्या जाने शहादत किस को कहते हैं !!

खामोश है ये दुनिया भी तेरे आने की आहट से,
और ज़माना क्या जाने शिकायत किस को कहते हैं !!

पैसे से तो हमेशा गुर्बत ही रही तेरे आशिक़ पर,
कभी इश्क़ के बाजार में पूछना सआ'दत किस को कहते हैं !!

तेरे जाने के बाद भी साँसें चल रहीं हैं आज तक,
दुनिया भी तो ये जाने की लानत किस को कहते हैं !!

तुझे रक़ीब की बाहों में देख कर भी खुश हूँ मैं,
जो ये बागी चाहत नहीं, तो चाहत किस को कहते हैं !!

सीखा नहीं बागी ने मोहब्बत में चालें चलना,
जो सीखता तो बतलाता सियासत किस को कहते हैं !!

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11 NOV 2019 AT 13:57

यह नाकारा आशिक़ किसी काम तो आया होगा,
बेवफाओं की महफ़िल में मेरा नाम तो आया होगा !!

जानता हूँ नहीं किस्मत में तारीफ़ें हमारी,
तेरे लबों से मेरे इश्क़ पर इल्ज़ाम तो आया होगा !!

कभी सीखा नहीं मैंने जीना बगैर उसके,
देखो, मेरे मरने का इंतज़ाम तो आया होगा !!

वादा था मेरा शब भर उसकी आँखों से पीने का,
ढूंढों शायद पीने को कोई जाम तो आया होगा !!

उसने अपनी डोली से मुझे मुड़ कर भी नहीं देखा,
और मेरे यार पूछते हैं कोई पयाम तो आया होगा !!

सुना है माँगती हो दुआ मेरी बर्बादी की अक़्सर,
मय्यत देख कर आँखों को आराम तो आया होगा !!

जनाज़ा जब निकला बाग़ी का उसकी गली से यारों,
बन्द खिड़कियों के पीछे से सलाम तो आया होगा !!


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