इश्क़ का इल्म तो बहुत है तुम्हे,
इज़हार पर जब बात आती है तो अनपढ़ क्यों हो जाते हो ?
हर रात चांद को देखते हुए नए तरीके सोचते हो उसे बयां कर देने के,
सुबह उसके सामने जाते ही किस दुनिया में खो जाते हो ?
उसकी राह - गुज़र में उसका इंतज़ार करना तो तसलसुल चलता रहता है,
पर कब तक दिल की बात को पोशीदा रखने का इरादा है ?
हा माना मौके बहुत से मयस्सर है तुम्हे,
पर इस गलत फहमी में मत रहना के तुम्हारे पास वक़्त बहुत ज़्यादा है।
हर्ज ही क्या है उसे जा कर बोल देने में वो जो तुम दिल में बात लिए चलते हो ?
बता देने में के जब वो पास नहीं होती तो कुछ यूं उदास हो जाते हो जैसे के एक लंबे दिन के बाद हज़ारों सूरज एक साथ ढलते हो।
ये जो तुम अपनी खुशी को उसकी मुस्कुराहट पर मुन्हासिर किए बैठे हो,
जब तक उसे बताओगे ही नहीं तो इसका इस्त्तीफादा क्या होगा ?
किस सोच में पड़े हो तुम किस बात का इंतजार है,
अब तो होना था जितना हो गया,
अब उस से इस से इश्क़ ज़्यादा क्या होगा ?
- Sanchit kalra