शाम की क्या बात कहे,
आजकल चाय भी फिकी लगती है,
हँसी तो होती है,
परंतु हँसी गम का चौला लिए चलती है|
किसी के सर पर छत है,
तीन वक्त का खाना है साहिब,
वहीं कोई मज़दूर हालातों से,
बेगाना है साहिब |
ये लंबी शाम, अँधेरी रातें,
उजाले की उम्मीद में,
उस गरीब की तरसती आँखें,
हौंसलें की लंबी उड़ान,
सलाम है तुझे मेरे जवान!!
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