Sameer Ahmad   (समीर अहमद झींझानवी)
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Advocate by profession, poet by heart,
Joined 1 February 2017


Advocate by profession, poet by heart,
Joined 1 February 2017
11 APR AT 1:58

“वालदेन का साया न हो सर पर तो रंज होता है, उनके बिना हर त्यौहार बेरंग होता है। यूं तो मायूसी कुफ्र है, मालूम है मुझे, लेकिन इस दिल को कैसे मनाऊं, जो उन्हें हर पल याद करके रोता है। आता नहीं मुझे झूठा मुस्कुराना, वालदेन से बिछड़ने का गम वही जानता है, जो उन्हें खोता है।

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28 JAN AT 3:01

यूं तो मसला कुछ भी नहीं था हमारे दरमियान,
बस उन्होंने लहज़ा बदला, तो हमनें रास्ता बदल लिया।

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27 JAN AT 9:55

छोड़ना तेरा फ़ैसला था या,
बिछड़ना मेरा नसीब,
मेरा वक्त ही कुछ ऐसे बदला,
हबीब ही हो गए रकीब।

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26 JAN AT 0:08

"तुझे भूलना गर मेरे इख्तियार में होता, तो खुदा की कसम, तेरे बारे में लफ्ज़ ना लिखता।"

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24 JAN AT 2:07

मेरे लिखे अल्फाज़ तो समझ न पाए,
तुम मेरी खामोशी को क्या समझोगे।

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10 JAN AT 9:14

दुआओं से अगर मिल भी गया तो,
मिलेगा पत्थर की मानिंद जिस्म मेरा,
मेरी रूह और अहसास, तो कब के दफन हो गए हैं।

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9 JAN AT 9:36

मुझे पाना तेरे लिए अब मुमकिन नहीं,
बेहतर यही है कि भूल जा मुझे या खुदा से दुआ कर,
कि वो कोई मौजज़ा कर दे।

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9 JAN AT 0:59

तुम्हारे चाहने से अब ना हासिल होऊंगा तुम्हे,
मैं वो गया वक्त हूं जो कभी लौट कर नहीं आता।

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8 JAN AT 0:29

कर लेता हूँ अक्सर आंखें नम अपनी,
यह सोचकर, कहीं लोग मुझे पत्थर का देवता न बना दें।

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5 JAN AT 1:21

राब्ता तो रख सकता हूं तुमसे आज भी,
लेकिन मुझे तुम्हारी रुसवाई से डर लगता है।

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