चल आ हम यूँ मिलें,
ये सही-गलत खो जाएँ ।
जल जाएँ कुछ रिवाज,
कुछ गलत सही हो जाएँ।
थोड़ी शिकायतें मैं भूलूँ,
तेरी उलझनें कम हो जाएँ।
थोड़े दस्तूर तू तोड़े,
कुछ मेरी रिहाई आसां हो जाएँ।
मैं चाँद को देखूँ मेरे खिडकी से,
होंठो पर दबी मुस्कान खिल जाएँ।
वहीं चाँद फ़िर तुझ पर चमके,
मेरा सुरूर तुझे मिल जाएँ।
हम जो थोड़े और करीब हों,
सियासत के नफ़रत जल जाएँ।
ज़मीं को उसी सियासत ने बाँटा हो चाहे,
आसमां अपना हो जाएँ।
हीर सोई हो रांझे के कंधे पर,
कुछ ऐसा मौसम हो जाएँ।
रंगरेज़ कुछ लाल छिड़के कैनवस पर,
वो शक्ल हमारा हो जाएँ।
चल आ हम यूँ मिलें,
ये सही-गलत खो जाएँ। ।
जल जाएँ कुछ रिवाज,
कुछ गलत सही हो जाएँ।।
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