17 JAN 2018 AT 16:46

दिन की रौशनी में जिसे तुम बेगैरत कहते हो,
शाम होते ही उस तैवायफ के कोठे पर क्यों जाते हो?

करते तो हो जिस्म का सौदा उसके ही आँगन में,
लेकिन हवस में उसे अपनी रूह ही बेच आते हो।

मदिरा पान में फिर जो तुम्हे मजा आता है,
कभी सोचा है खामियाजा उसका जिस्म उठाता है।

बदनाम उसको भला करते क्यों हो तुम?
उसकी बस्ती में तो खुद नंगा होकर आते हो।

- sasha✍🏻