18 AUG 2017 AT 17:44

नाशाद गुल भी
महक उठता है
जब गुलज़ार का ज़िक्र
चलता है
चाँद को नज़्म, शेर, त्रिवेणी
बनाया है जिसने
उनकी आवाज़ की ठसक पर
ज़माना मरता है
इश्क़, अदब, अहसास, बन्दगी
हर हर्फ़ से सुक़ून बरसता है
इश्क़ करना सिखाया उन्होंने
सुख़न से, अलफ़ाज़ से
मैं तो क्या, ख़ुद ख़ुदा भी
उन्हें सुनता है
हम क्या दुआ दें उनको
जो ख़ुद एक दुआ है
उनकी सादगी देख
ख़ुद घमंड तरसता है
- साकेत गर्ग 'सागा'

- साकेत गर्ग ’सागा’