लो जीत गयी सियासत, नफ़रत और फ़िरक़ा-परस्तीसुना है आज फ़िर, दो बेगुनाहों का दिल दुखा है कहीं- साकेत गर्ग - साकेत गर्ग ’सागा’
लो जीत गयी सियासत, नफ़रत और फ़िरक़ा-परस्तीसुना है आज फ़िर, दो बेगुनाहों का दिल दुखा है कहीं- साकेत गर्ग
- साकेत गर्ग ’सागा’