21 JUN 2017 AT 2:43

क्यों ख़फ़ा-ख़फ़ा से, रहते हैं हम सब
रहना हैं यहीं, 'यहीं नहीं रहते' हैं हम सब
कभी इससे नाराज़, कभी उससे नाराज़
'ख़ुद से ही', क्यों नाराज़ रहते हैं हम सब
कौन दिल दुखायेगा, कौन क्या ले जायेगा
अकेले आये थे, अकेले ही जायेंगे हम सब
कल के ज़ख्म को, आँसुओं से सींचते हैं
आज की हँसी को, क्यों 'तरसाते' हैं हम सब
यह होगा वो होगा, यह ना होगा वो ना होगा
हर पल सिर्फ़ 'खौफ़' ही क्यों खाते हैं हम सब
आओ याद करें, बचपन की वो बेबाक़ हँसी
ख़ुद को याद कर, ख़ुद को हँसाते हैं हम सब
आओ! जीवन में कुछ पल, यहीं रुक जाते हैं
रंज-ओ-गम भूल, कुछ गुनगुनाते हैं हम सब
ग़म मेरे कुछ ज़्यादा, तुम्हारे कुछ कम हैं
चलो! अब एक-दूसरे को, हँसाते हैं हम सब
ख़ुद ही ख़ुद पर, आज एक 'अहसान' कर दें
आओ! अपने होने का, जश्न मनाते हैं हम सब
- साकेत गर्ग

- साकेत गर्ग ’सागा’