26 JUN 2017 AT 16:40

बड़ी-बड़ी बातें बनाता था मैं
सारी दुनिया को उनमें, फँसाता था मैं
यूँ तो मिल जाते थे कईं दीवाने, हर मोड़ पर
पर किसी का दीवाना, नहीं बन पाता था मैं
ना जाने कहाँ से, वो 'नाज़नीं' उतर आयी
'परी' सी बनकर..इस बहते 'दरिया' में समाई
सबको बातों में फँसाने वाला..
बड़ी-बड़ी बातें बनाने वाला..
ख़ुद उसकी कुछ प्यारी बातों में खो गया
न जाने मुझे क्या हो गया?
ना कभी मिला, ना फ़िर मिलने की आस है
पर लगता है जैसे, वो हर पल मेरे पास है
कहा उसने भी वही सब, जो सब कहते थे
पर न-जाने क्यों उसका कहना, कुछ ख़ास है
वो मिलेगी नहीं मुझे, पता है मुझे
पर न-जाने क्यों
इस 'बे-ग़ैरत' दिल को
....कुछ आस है
- साकेत गर्ग

- साकेत गर्ग ’सागा’