अहसास भी उसी से मिले
जिससे हैं यह घाव मिले
कैसे करूँ शिक़वे..
कैसे करूँ मैं उससे गिले
उसी ने तो इश्क़ का मतलब, था सिखलाया
बनके महताब..
मेरी स्याह काली रात को, था चमकाया
आज अगर वो बेवफ़ा हो गयी तो क्या
वफ़ा का पाठ भी तो, उसी ने था पढ़ाया
बस अब इतनी सी है दुआ
मेरी सुन ले वो इतनी सी इल्तिज़ा
अपना दामन वो, और नापाक ना होने दे
अब किसी और को, उसे बेवफ़ा ना कहने दे
जो हमराह उसने अब चुना है
वो उसी का सानी रहे,
उसी से शुरू, उसी पर ख़त्म
उसकी ज़िंदगानी रहे
- साकेत गर्ग
- साकेत गर्ग ’सागा’