Azam Dehlvi   (Azam)
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Journalism (MCRC)
Jamia
Joined 4 June 2017


Journalism (MCRC)
Jamia
Joined 4 June 2017
3 JAN AT 23:16

एक गुज़र है दिल के तहखाने तक,
बङा लम्बा सफर है मयखाने तक...

कितना हसीन है फूलों का सफर भी,
खिलने तक बिखरने तक मुरझाने तक...

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25 NOV 2023 AT 0:25

क्या लहजा हो कैसी ज़बान इख़्तियार करे,
उससे किस अंदाज में कोई इज़हार करे...

नफरत बढ़ चली है अब दुनिया में,
हर किसी से कह दो के प्यार करे...

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10 NOV 2023 AT 1:17

हिज्र भी विसाल भी
ये मुहब्बत के सवाल भी

तेरी आरज़ू थी गए बरस
तिरी आरज़ू है इस साल भी

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7 AUG 2023 AT 23:49

बस्तियां उजाड दी गईं हम-शनास के हाथ,
कितने मजबूर हैं हम अपनी हिरास के हाथ...

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2 AUG 2023 AT 2:58

सूद-ओ-ज़ियाँ से आगे का मसअला है मुहब्बत,
वस्ल-ओ-फिराक़ के कहीं दरमियान है मुहब्बत...

मुझको लाजवाब कर जाती है तबस्सुम उसकी,
ये तुम हो के मेरी जान है मुहब्बत...

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5 JUN 2023 AT 1:42

घर में चीज़ें बढ़ रही हैं ज़िंदगी कम हो रही है
धीरे धीरे घर की अपनी रौशनी कम हो रही है

शहर के बाज़ार की रौनक़ में दिल बुझने लगे हैं
ख़ूब ख़ुश होने की ख़्वाहिश में ख़ुशी कम हो रही है

अब किसी को भी छुओ लगता है पहले से छुआ सा
वो जो थी पहले-पहल की सनसनी कम हो रही है

तय-शुदा लफ़्ज़ों में करते हैं हम इज़हार-ए-मोहब्बत
अब तो पहले इश्क़ में भी अन-कही कम हो रही है

ले गया ये शहर उस को मेरे पहलू से उठा कर
मुझ को लगता है मिरी दीवानगी कम हो रही है

हुस्न का बाज़ार आना जाना भी कुछ बढ़ रहा है
कुछ मिरी आँखों की भी पाकीज़गी कम हो रही है

वक़्त डंडी मारता है तोलने में मेरा हिस्सा
दिन भी छोटे पड़ रहे हैं रात भी कम हो रही है

शहर की कोशिश कि ख़ुद को और पेचीदा बना ले
मेरी ये तशवीश मेरी सादगी कम हो रही है

साहिलों की बस्तियाँ ये देख कर ख़ामोश क्यूँ हैं
बस्तियों के फैलने से ही नदी कम हो रही है

शाम आते ही तुम्हें रहती है घर जाने की जल्दी
'फ़रहत-एहसास' इन दिनों आवारगी कम हो रही है

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2 JUN 2023 AT 23:35

कोई बात समझाने मे कमी रह गई,
मैं उसको देखता वो मुझको देखती रह गई...

इक उम्र की हयात का है ये वजीफा अपना,
चंद पन्नों मे कुछ अधूरी सी शायरी रह गई...

निकल आओ अपने अंदर से के शब हो चली,
चाँद तन्हा हो जैसे के गोया फकत चाँदनी रह गई...

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15 DEC 2022 AT 23:06

एक हुस्न-ए-बा-कमाल से गुज़री मुलाकात का सुनो अफसाना,
बोले तो जैसे फूल झडतें हों लब से यकसा...

न ऑंखों मे काजल न लब पे लाली,
एसी सादगी के रश्क करे आप ज़ुलैख़ा...

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18 JUN 2022 AT 3:55

मंज़िल है नज़र मे और शिकस्त-पाई है,
अच्छी किस्मत है अपनी अच्छी ख़ुदाई है...

हमने ये कब कहा के हम हैं मसीहा-नफ्स,
आदमी हैं हम और सद हममें बुराई है...

तन्हा जीतें हैं तन्हा मर जातें हैं लोग,
कैसी वहशत है कैसी तन्हाई है...

वो के जो साथ अपने अक्सर सफर मे रहा,
लाज़िम है के वो अपनी ही परछाई है...

हम भी 'आज़म' बज़्म-ए-यार से ऊठ चले,
अब न अपनी वहां तक रसाई है...

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15 MAY 2022 AT 1:59

If you still think I care for you it means you care for me.

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