Sahil thakur   (✒️रिवायत)
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Joined 1 November 2017


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22 JUL 2023 AT 19:47

मेरी सुबह से शाम होती है, दिन बिताने के लिए ।
कितना शायराना है ना, मगर उतना ही मुश्किल ।।

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4 JUL 2023 AT 20:51

समक्ष शांत है, बस ये वजह तेज बोलने की ।
खामोशी ओर बेजुबानी में फर्क होता है ।।

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26 APR 2023 AT 20:26

अर्ज हमारी, इरशाद भी हमारा ही ,
अरे, अकेले मत समझो,
बस खुद से मोहब्बत ज़रा सी ज्यादा है ।।

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20 MAR 2023 AT 11:34

सब कुछ बिखरा हुआ, इकट्ठा होकर आता है ।
मेरे सजे हुए को, इकट्ठा कर चला जाता है ।
मेरे रोज का हर दौर,
मेरे इस दौर के हर रोज से बड़ा हो जाता है ।।

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11 MAR 2023 AT 20:52

सवाल में, ऐसा महसूस कराया,
की ऐसा महसूस हो रहा है, की ऐसा महसूस होगा ।।
जवाब में , ऐसा महसूस हुआ ,
की जैसा महसूस हो रहा है, वैसा महसूस होगा ।।

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25 FEB 2023 AT 12:03

चुप रहकर, ज्यादा कहता हूं ,
इसलिए चुप नही रहता हूं ।
मैं बाक़ियों से अलग ऐसे ।
की मैं अलग होकर भी, बाकी जैसा रहता हूं ।।

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20 FEB 2023 AT 1:20

ये कहती है,
तुम आज भी उसके लिए लिखते हो ।
ऐसा मत किया करो, कमजोर दिखते हो ।।

मैं कैसे बताऊं इन्हें ,
मैं उस वक़्त के खुद को लिखता हूं, उसको नही ।
ये बात कुछ को समझ आती है, सबको नही ।।

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22 JAN 2023 AT 22:07

उन्हें मेरी पसंद, पसंद नही ।
ना जाने उन्हें कब, खुद से मोहब्बत होगी ।।

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11 JAN 2023 AT 21:45

कोई जरूरी है, अभी बता दो उसे ।
ये रोज, रोज आता है, गुंजाइश की गाँठ को ढीला करने ।।

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8 JAN 2023 AT 22:29

इस जाल सी ज़िंदगी में, कुछ उलझ गया है ।
ना निखरा जा रहा है, ना बिखरा जा रहा है ।

ना मिट्टी जैसा ठहराव, ना रेत सा चंचल ,
ज़िंदगी कुछ तो हो गया है तुझसे,
कुछ तो खो गया है मुझसे ।

मैं, ना शनिवार के सूकून जैसा ,
ना सोमवार के तूफान जैसा ।
कुछ कुछ मिलता हु, तो इतवार सा ,
वजह,
मालूम ही नहीं पड़ता, शुरुवात है या अंत ।।

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