Sagar Paliwal  
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Joined 21 January 2018


Joined 21 January 2018
5 APR AT 21:18

जिस व्यक्ति का सिर अहंकार से नहीं, आत्मविश्वास से उठता हैं।
और स्वार्थ से नहीं, आदर एवं श्रद्धा से झूकता हैं।
उस व्यक्ति को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता हैं।

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10 FEB AT 19:41

Don't give up so early for not seeing results
You never know when destiny would play its role

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15 DEC 2023 AT 8:29

समय की समस्या यही है,
की वो किसी के पास नहीं है।

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26 SEP 2022 AT 23:15

भोली सी सूरत हैं, ममता की मूरत हैं|
हृदय में भरी करुणा अपार, श्री चरणों में नमन हैं बारंबार|
असुरों का संहार किया, ऋषियों का उद्धार किया|
भुजाओं में बल हैं अपरंपार, श्री चरणों में नमन हैं बारंबार|
दैत्य सारे थरथराते, महाकाली रुप बड़ा विशाल|
तीनों लोक कंपाती ऐसी हैं हूंकार, श्री चरणों में नमन हैं बारंबार|
दर पे जो कोई आता हैं, बिन मांगे सब कुछ पाता हैं|
अनंत हैं दया का भंडार, श्री चरणों में नमन हैं बारंबार|

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23 OCT 2021 AT 22:59

कहा जाता है की अधूरा ज्ञान सदैव ही हानिकारक होता हैं
किंतु कभी कभी परिस्थिति का सामना करना आवश्यक होता है
ऐसी ही एक परिस्थिति में वह योद्धा फंस गया था
पिता थे दूर और सम्मुख चक्रव्यूह रच गया था
वो साहसी बालक अकेला ही चक्रव्यूह में प्रवेश कर गया
मध्य में स्थित महा योद्धाओं से अकेले ही लड़ गया
शौर्य किया ऐसा की महारथीयों को एक साथ आक्रमण करना पड़ा
उस दिन वीरगति पाकर भी अभिमन्यु का नाम हो गया सबसे बड़ा

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8 OCT 2021 AT 9:24

पानी में घुले आटे को वो दूध समझ कर पीता रहा
और राजसी ठाठ के सपने लिये ग़रीबी में ही जीता रहा
इसी बात का लाभ दुर्योधन ने उठाया था
उससे मित्रता कर अपने अधीन बनाया था
मित्रता का मुल्य उसने पांडव पुत्रों के प्राण लेकर चूकाया था
और पांडवों के अंतिम दीपक को बूझाने बृह्मास्त्र चलाया था
कूकर्म किया ऐसा की इतिहास आज भी शर्मींदा हैं
और श्रीकृष्ण के श्राप की पीड़ा सहता अश्वत्थामा आज भी ज़िंदा हैं

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7 JUL 2021 AT 23:44

न चूकता था अपना लक्ष्य कभी, न मानता था कभी हार
चाहे वो हो द्रोपदी स्वयंवर या युद्ध में खड़े हो शत्रु हज़ार
उसके बाण ही थे उसका परिचय, धर्म युक्त उसकी हर राह थी
श्रेष्ठ बनने का मोह न था, उत्तम बनना ही उसकी चाह थी
जब बंद हुऐ शांति के मार्ग सभी और युद्ध ही अंतिम समाधान मिला
जब कांपे अपनो के विरुद्ध हाथ, तब भगवत गीता का ज्ञान मिला
चाहे कितनी विपदाऐं आऐ, चाहे विरुद्ध खड़े हो अनेक महारथी
मार्ग जब धर्म का हो तो स्वयं वासुदेव बन जाते है तुम्हारे सारथी

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5 JUN 2021 AT 15:45

गुरु के उस आश्रम ने कुरू राजकुमारों को वीर योद्धा बनाया था
श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन ने विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर का पद पाया था
किन्तु एक समय ऐसा भी आया महाभारत के उस युद्ध में
जब गुरु द्रोण को लड़ना पड़ा अपने प्रिय शिष्य के विरुद्ध में
उनके बाणों की वर्षा से जब होने लगा पलड़ा भारी असत्य का
तब पांडवों को धर्म रक्षण हेतु लेना पड़ा सहारा अर्धसत्य का
'अश्वत्थामा मारा गया' सुनते ही गुरु द्रोण ने शस्त्र त्याग दिये
पुत्र मोह में युध्द किया और पुत्र मोह में प्राण त्याग दिये

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28 MAY 2021 AT 20:14

एक प्रतिज्ञा ऐसी जिसने बांधे उनके हाथ
उस धर्म युद्ध में देना पड़ा अधर्म का साथ
कोरवों पर आंच भी न आई जब तक वो युद्ध भूमि में थे खड़े
पराक्रम ऐसा की स्वयं वासुदेव को वचन तोड़ शस्त्र उठाना पडे़
अंततः श्रीकृष्ण से उपदेश पाकर धर्म स्थापना का विचार किया
अपने शस्त्र त्याग दिए और बाणों की शैय्या का स्वीकार किया
अर्जुन ने पुछा क्या कारण है इन बाणों की पीड़ा सहने का
पितामह ने कहा कदाचित यही दंड है द्युत सभा में मौन रहने का

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23 MAY 2021 AT 11:24

न कवच था सीने पर, न धनुष था हाथ में
रथ का पहिया धंसा भूमि में, भाग्य भी तो न था साथ में
भूला अपनी विद्या सारी, जब थी आवश्यकता सबसे भारी
इस अवसर का लाभ उठाकर, अर्जुन को चलाना पड़ा बाण
हे दानवीर! क्या यही नहीं है, तुम्हारे सामर्थ्य का सच्चा प्रमाण

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