Sachin Dixit   (Sadix)
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Joined 13 October 2017


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Joined 13 October 2017
6 SEP 2020 AT 21:56

जो कुछ भी हो रहा है कुछ भी नहीं है
अफ़साना निगार कोई अफ़साना सुना रहा है

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4 AUG 2020 AT 23:02

बात जो लब पर रुकी थी खो गयी है
जिंदगी कैसी थी तू क्या हो गयी है

मैने जब भी चाँद को आवाज़ दी
चांदनी करवट बदल के सो गई है

शाम से कुछ माँगा भी नहीं
रात भी तो अब पराई हो गयी है

लौट के वापस कभी आएगी क्या
जिंदगी दरिया से बह के जो गयी है

कौन नंगे पाँव घर से जा रहा है
जिस को जाना था शायद वो गयी है❤️

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5 JUL 2020 AT 20:24

बुझ गए हैं जो वो तारे हो गए
हम नदी के दो किनारें हो गए

टूट कर ऐसे गिरे हम साख से
फिर हवा के हम सहारे हो गए

चाँद ने ना जाने क्या कहा रात से
रूठ के करवट सितारे हो गए

हमने माँगी जब ख़ुदा से जिंदगी
हम ख़ुदा के ही प्यारे हो गए

आँख खोले मैं सभी को सुन रहा
किस अदा से सब तुम्हारे हो गए

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26 NOV 2018 AT 21:50

आदमी हो कर भी इंसान होना
सबसे मुश्किल है आसान होना

ख़्वाहिशों को आज जला रहा हूँ
मैं चाहता हूँ अब श्मशान होना

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22 NOV 2018 AT 20:27

इस उदास कमरे में पड़ी हुई
सिसकती रातें जिस दम
अपनी आँखें पोंछकर चल देंगी
छुड़ा कर अपना दामन अंधेरो से

और जिंदगी सो रही होगी चैन से
वक़्त के दरीचे पर बाएं करवट
मौत तब आखिरी उम्मीद बन कर आएगी
देख लेना तुम अपना अक्स
मेरी मुर्दा आँखों में

देखना तुम उस रोज़
हूबहू मेरे जैसी लगोगी

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25 JUN 2020 AT 12:39

नदियां, पहाड़, हवा, ये वादियां
सब तो तेरे ही जैसे हैं
बस एक मैं हूँ
न खुद सा न तुझ जैसा

न खो रहा हूँ
न कुछ हो रहा हूँ

अब एक कदम भी और क्यों
न था कुछ कभी
न है कहीं कुछ

सिर्फ तुम हो
महक रही हो
मेरे ही होने में

या मेरा होना भी झूठ है
पर.. तुम्हारी महक?
जिसमे मैं हूँ

क्या कुछ हो रहा है?
कायनात में
कुछ तो है...
कुछ नहीं भी

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21 JUN 2020 AT 12:44

मिला था मुझे जो मन्नतों के बाद
नजर आया है आज मुद्दतों के बाद

लौटा रहा हूँ जो ज़िन्दगी ने दिया है
उबर जाऊंगा कुछ किश्तों के बाद

जाने क्यों दूँ उसको जो मेरा ही है
पकड़ लूंगा हाँथ मैं मिन्नतों के बाद

कहाँ ले जाएगी मुझे हयात-ओ-कज़ा
क्या होगा आगे और जन्नतों के बाद

हवाएं रुख बदलेंगी यकीनन इस बरस
ताज़ भी हिलेगा अब तख्तों के बाद

आजमा रहा हूँ अभी कुछ अपनों को
देखूं क्या रहता हूँ इन रिश्तों के बाद

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20 JUN 2020 AT 23:40

जुगनू सब जा रहे हैं चाँद को लाने के लिए
इंतजार बहुत है अभी शहर के आने के लिए

आलम देखने लायक होगा आज फलक का
तारे भी रो पड़ेंगे चाँद को मनाने के लिए

बियाबान हो गई है आसमाँ देख तेरी बस्ती
सितारे भी गिर पड़े हैं मुरझा जाने के लिए

जुगनू को कह दो कोई वह अकेला जी जाए
चांदनी खो न देना तुम कारवां बनाने के लिए

अंधेरों अब तुम्हारी उम्र ढलने को है
मेरा चाँद आ रहा है जमीं की रौशनी के लिए

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19 JUN 2020 AT 18:29

जोर की बारिश आँखों में है आग लगी है सीने में
खो कर तुमको जाना है कि कितना दर्द है जीने में

आँखों की इस बारिश में सब बह न जाये डरता हूँ
कितनी शिद्दत से रखा था हर एक दर्द करीने में

वक़्त गुजरता नहीं यहाँ का जबसे तुम यूँ चले गए
कितनी सदियां जीनी होंगी साल के एक महीने में

दर्द ठहरता नहीं, नसों में हरदम बहता रहता है
याद तुम्हारी रख ली मैंने जबसे यार सफीने में

कितने ज़ख्म मिले हैं मुझको छोटी सी जिंदगानी में
कितनी उम्रें बीत गई इन जख्मों को फिर सीने में

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7 APR 2020 AT 19:15

अक्सर गौर से वो मेरे चेहरे को पढ़ा करती है
मेरे माथे की लकीरें देख जिंदगी उदास रहती है

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