कट गए ये चुनाव भी, इक सेमेस्टर की तरह ।
जो जीतेगा बजाएगा, सबको कनेस्टर की तरह ।।
बहुमत के दंगल में, सब डेढ़ पसली हैं ।
फॉर्म तो भर देते हैं सब, सिलवेस्टर की तरह ।।
गिरेबां में झांकते ही, जमानत जब्त है जिनकी ।
मार्केट मे घूम रहे हैं वो, मिनिस्टर की तरह ।।
माता बहनों के संबोधन, हाथ जोड़े प्रत्याशी ।
टकराएंगे भीड़ में कल से फिर, मोलेस्टर की तरह ।।
वोट दिया और भूल गए, ये भी कोई बात हुई ।
हिसाब भी लेनेका है इनसे, इन्वेस्टर की तरह ।।
मुद्दों के ज़िक्र पे, इनको ठस्का आ जाता है ।
रैलियों में बजते रहते हैं, ट्रांजिस्टर की तरह ।।
तारीख से सीख, अमन की बात कर ।
महात्मा बना जो आया था, बेरिस्टर की तरह ।।
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