Rohit Srivastav   (कुछ टुकड़े जिंदगी)
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Joined 22 June 2017


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Joined 22 June 2017
5 OCT 2021 AT 22:49

ज़माने के सारे दायरे फूंक दिए
और रत्ती भर धुआं तक नहीं,

पूरी दुनिया एक पल में बदल गई,
और इस दुनिया को कुछ हुआ तक नहीं,

एक दूसरे में समा गए,
और एक दूसरे को छुआ तक नहीं,

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16 AUG 2021 AT 23:56

ये ज़माना कद्र कर पाए तुम्हारी,
इतनी समझ इस समाज में कहां,

जो क़ैद हो सको किसी दायरे में तुम,
इतनी पकड़ किसी रिवाज़ में कहां,

जो इश्क़ तुम्हे खुद से है,
वो कहां मिलेगा किसी और से तुम्हे,

जो उड़ सके तुम्हारे सपनो की ऊंचाइयों तक,
उतनी उड़ान किसी के परवाज़ में कहां!

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16 AUG 2021 AT 10:14

मैं तुम्हारी निगाहों में डूब तो जाऊं,
तुम्हारी आंखों के आयाम बहुत हैं,

मैं हिम्मत कर भी लूं,
इस दुनिया से गद्दारी की,
और छुप जाऊं, तुम्हारे छींट वाली
ओढ़नी की धुंधली सी छांव में,

मगर आज सोमवार है,
और आज काम बहुत है।

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12 AUG 2021 AT 22:50

जो सपने हैं मेरे,
उन्हें जीती जाऊं मैं,
ख्वाहिशें बेज़ार क्यों करूं?

मेरी कहानी है, मैं ही लिखूंगी,
किसी राजकुमार का मैं,
इंतजार क्यों करूं?

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12 AUG 2021 AT 10:46

कुछ दिखा और तुम्हारी याद आ गई,
वो दौर ही अच्छा था,
जब तुम्हारे सिवा कुछ देखता नहीं था।

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31 JUL 2021 AT 13:33

::नफ़रत::

मुझसे मीलों दूर एक इंसान रहता है,
मैं उस से नफ़रत करता हूं।

ऑफिस जाते हैं, हम दोनों ट्रैफिक में फंसते हैं।
रेडियो on करते हैं, और ads सुनते हैं।

Boss से दोनों ही परेशान हैं,
दोनों ही जूनियर्स पर गुस्सा उतारते हैं,

शाम को टीवी पर कुछ ढंग का नहीं आता,
On कर के बस चैनल बदलते हैं।

कुछ दलाल हैं जो जहर बांटते हैं मुफ्त में,
कुछ टीवी पर हैं, कुछ स्कूल में, कुछ सरकारों में, कुछ घरों में।

मेरे लोग उसके लोगों को मारना चाहते हैं। उसके लोग मुझे।
बॉर्डर पार एक इंसान है, जो मुझसे नफ़रत करता है।

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15 JUN 2021 AT 11:31

तुम्हारी खामोशी का ही तो शोर है,
जो रात भर सोने नहीं देता,

मेरे मंजिलों में शामिल हो तुम,
तभी तो ये रास्ता मुझे तन्हा रोने नही देता,

तुमने कहा था एक दिन,
की कयामत से पहले मुलाकात हो हमारी,
ये मुमकिन नहीं,

मैं कयामत मांग लाया खुदा से,
वरना ये ज़माना मुझे तेरा होने नही देता।

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9 JUN 2021 AT 10:07

Tumhari aawaz me,
Ek goonj tanhai ki bhi shamil hai,

Lagta hai bahut dino se,
Khud ke sath baatein nahi ki.

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7 JUN 2021 AT 9:30

कितने ही आंसुओं का कत्ल हुआ है,
बाथरूम की फर्श पर,

ना सिसकने की आवाज़ आती है,
ना आंसुओं के गीलेपन के निशान।

कितने ही एहसासों को पानी से धो कर,
निकले हैं हम, नहाए हुए, नए हुए।

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25 MAY 2021 AT 19:55

चांद में दाग है,
तो दाग भी रहने दो,

सच खूबसूरत है,
ये मानना भी खूबसूरती ही तो है,

मुझे ये दुनिया,
बहुत रास आती नहीं,

मैं फिर भी जिंदा हूं,
ये जानना भी खूबसूरती ही तो है।

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