पढ़ लूँ तुम्हे नज़र से जी भर कर,खुली किताब सी हैं शख्शियत तुम्हारी....! - उन्मुक्त स्याही "SaaR"
पढ़ लूँ तुम्हे नज़र से जी भर कर,खुली किताब सी हैं शख्शियत तुम्हारी....!
- उन्मुक्त स्याही "SaaR"