दिल हुआ बेईमान मेरा,देख कर तुम्हारी लचक को,पागल सा भटक रहा हूँ तुम्हारी गलियों में,बस तुम्हारे दरस को....! - उन्मुक्त स्याही "SaaR"
दिल हुआ बेईमान मेरा,देख कर तुम्हारी लचक को,पागल सा भटक रहा हूँ तुम्हारी गलियों में,बस तुम्हारे दरस को....!
- उन्मुक्त स्याही "SaaR"