शहर शहर नहीं लगता है
कितने ही अजनबी है यहां,
सब के सब मतलबी है यहां।
गाँव में जो सुकून था
वो इन तंग गलियों में कहा,
कमाने की ललक लिए
ऐशों-आराम मिलेगा सोचकर आए थे
बसर के लाले है
दो वक्त की रोटी भी नसीब में नहीं यहां।
शहर शहर नहीं लगता है
कितने ही अजनबी है यहां,
सब के सब मतलबी है यहां।
बड़ी-बड़ी इमारते, सड़के तो है
मगर किसी का भी दिल बड़ा नही है यहां,
दादाजी आप सच कहते थे
ज्यों का त्यों ही है शहर
कुछ भी खास नहीं है यहां।
शहर शहर नहीं लगता है
कितने ही अजनबी है यहां,
सब के सब मतलबी है यहां।
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