ROHIT PANDEY   (Aazad)
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Joined 2 March 2018


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Joined 2 March 2018
18 MAR AT 22:08

घावों को जब सिलना पड़ा
काफ़िले में भी अकेला चलना पडा
फिर! मुझे खुद को गलत ठहरा कर
कहानी से निकलना पडा

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29 MAR 2023 AT 0:00

उम्मीदों के वस्ते मैं शिकस्त नहीं ले जाऊँगा
मैं जब भी घर जाऊँगा जीत साथ ले जाऊँगा
माना मुशफिर हूँ
फिर भी एक दिन घर तो जाऊँगा
मंजिल ना भी मिली तो क्या,
जब भी गया तो सफर साथ ले ही जाऊँगा

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28 MAR 2023 AT 23:41

वक़्त-ए-उस्रत चलते चलते डगमगा रहे हैं
पहले साथ चलते थे काफ़िले
अब अकेले चले जा रहे हैं

जब मंजिल गई, साथ काफ़िले भी ले गई
तो ये सफर भी साथ ले जाती
हमें ये भी न पता हम कहां जा रहे हैं

फिर चलते चलते ये याद आया
शायद शहर से खाली हाथ
घर जा रहे हैं

कभी चले थे घर से उम्मीदों का वस्ता लेकर
फिर क्यों ही हारे से अपने घर जा रहे हैं

मंजिलों अपने शहर से कह दो
सफर पर फिर से मुसाफ़िर आ रहे हैं

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26 JAN 2022 AT 14:53

मरते तो सभी हैं
पर हमें अमर होना है

" फौजी "— % &

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11 SEP 2021 AT 22:10

बस एक मोड़ गलत मुड़ गया था जनाब,
फिर ना ही मंजिल मिली, ना वापिस घर आया__

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1 JUN 2021 AT 11:50

बयार का रुख अगर मेरे साथ होता
बताओ ! फिर तुम्हारा क्या जबाब होता ?

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24 JAN 2021 AT 23:20

है तमन्ना शहादत की
जब भी मरूं
तो कफन हो अलम तिरंगे का

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24 JAN 2021 AT 13:18

खिले रहो, बने रहो
तुम जिसके भी रहो बस नज़र में रहो
आयेंगे कई मंजर हमें भूल जाने के अभी
ख्वाहिश है, तुम हमारी यादों में रहो
इस शहर में रहो, न रहो
इन गलियों में चलो, न चलो
चाहे धीरे धीरे भुलादो तुम हमें
ख्वाहिश है, "आज़ाद" ख्वाबो में रहो ||

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15 MAY 2020 AT 20:38

चलो ! एक सुधार करते हैं
आज अपनी ही कलम पर एतवार करते हैं
नया लिखने को तो बहुत हैं मगर
आज लिखे हुए पर विचार करते हैं

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23 JAN 2020 AT 12:51

तुमको भी हो मोहब्ब्त....कोई बहाना नहीं था,
तुम तो थी राधिका.......पर में कान्हा नहीं था |
था एक बहाना...जो...तुमसे मिलने का अबतक
हमे अब वहाँ पर जाना नहीं था |

था जो दिल में मेरे ...गैरों को बताना नहीं था ,
जिसको था जताना.....अब वो मेरा नहीं था,
गिरते गिरते में जो उठकर निखरने चला था,
क्या था पता मोहब्ब्त में बिखरने चला था,

टूटकर बिखरने का चलन माँगता हूँ
जुदाई में तुमसे एक वचन माँगता हूँ
तुम हमको करो कुछ विदा उस तरह
फ़िर न हो किसी से मोहब्ब्त इस तरह

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