Rohit Nailwal   (Rohit Nailwal©)
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Joined 25 September 2017


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24 JUL 2021 AT 8:52

असहाय दुःख
नहीं देता पीड़ा
खुद से कभी,
फिर भी
लिए चलता है
दोष अपने पर!

नहीं दी खुशी
सुख ने कभी,
चलता रहा है
अभिमान में पर!

पीड़ा देती है
सुख से दुःख में
जाने की यात्रा,
दुःख के परे
सुख की आकांक्षा
भर देती है खुशी

और जीवन?
कितना निर्दोष है!

-


23 JUL 2021 AT 9:16

कितना सुकून देता है
एक ख़्याल भी
मौत का
मौत ख़ुद
क्या दे जाती होगी
कौन जान सका अब तक!

-


18 MAR 2021 AT 10:36

अपनों की
बेगानों की
अपनों में
बेगानों की
है क्यों नहीं
ये दुनिया
दीवानों की!
मुझसे लड़ती
खुशियाँ तेरी
तुझे लड़ाती
खुशियाँ मेरी,
खुशियाँ मेरी
तेरे दुःख में
मेरे दुःख में
खुशियाँ तेरी,
स्वार्थ तेरा
स्वार्थ मेरा
हम दोनों का
मेल कराए!
खुद में सिमटी
खुद में लिपटी
पल-पल में
रंग बदलती
ढंग बदलती
तेरी दुनिया
मेरी दुनिया

-


10 MAR 2021 AT 13:25

चलो
कुछ दूर चलें
साथ-साथ
बस, चलने के लिए

देखें एक दूसरे को
कुछ पल
यूँ ही
बस, देखने के लिए

हँसें खुलकर
हँसने के लिए

रुकें कुछ वक़्त
और लौट आएँ
एक-दूसरे के लिए।

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27 MAR 2020 AT 21:23

लेखक बनना इतना
आसान भी नहीं है,
वह जो कुछ लिखता है
बदले में उसे
वह-सब जीना भी पढ़ता है!

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24 MAR 2020 AT 21:58

जब भी मिलता है, लगता है कि तू और है
रंग तेरा कुछ और, दिखाता तू कुछ और है

कितना भी समझो, आती नहीं समझ में
इन तमाशों में नहीं, ज़िन्दगी कुछ और है

बोलता नहीं पर बहुत कुछ कह देता है तू
पर ये नादान उसे भी समझता कुछ और है

इक झलक पायी है तेरी जिस दिन से इसने
चाहत कुछ और है और चाहता कुछ और है

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6 MAR 2020 AT 10:45

ये शहर है साहेब
यहाँ लोग जितने दिखते हैं
उससे कहीं ज्यादा ऊँचे हैं।

घर के ऊपर आकाश
उतना साफ़ नहीं
जितना दिखाई देता है
विज्ञापनों में,
सपनों की भी
सीमाएँ बन गयी हैं
एक धुंध ने घेर रखा है
सबके आसमानों को।

चेहरे उतने खुश नहीं
जितने दिखाई देते हैं
मोबाइल स्क्रीन में!

और
मौत आती है यहाँ
जिंदगी की किश्तों में!

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27 FEB 2020 AT 19:14

ओ समुद्री लुटेरों!

सुख
कोई ख़जाना नहीं
जिसे लूट लिया जाए
बन्द बोतल में रखे
किसी नक्शे से खोजकर,
कहीं अनजान द्वीप में
या पुराने जहाजों में!

यह एक सौदा है
जिसमें देना पड़ता है
बदले में भी कुछ,
और वह है
पाई-पाई दुःख!

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26 FEB 2020 AT 23:21

नेपथ्य | लघु कथा

(Full Piece In Caption)

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17 FEB 2020 AT 21:22

प्रतीक्षा है
उस दिन की
जब रह जायेगा मौन
शुद्ध मौन
तेरे और मेरे बीच,

जब बैठेंगे साथ
और एक दूसरे को
समझने के लिए
सहारा ना लेना पड़े शब्दों का,

जब एक-दूसरे को समझना
कर्म ना होकर
क्रिया बन जाए दोनों के लिए,

जब प्रेम बताना ना होकर
केवल होना हो जाएगा!

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