Rohit Kumar   (रोहित माथुर)
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Author
Book Name - दो अल्फाज़ मेरे (Do Alfaaz Mere )
Releasing Date - 15th December 2018
Joined 12 March 2018


Author
Book Name - दो अल्फाज़ मेरे (Do Alfaaz Mere )
Releasing Date - 15th December 2018
Joined 12 March 2018
16 FEB 2022 AT 8:13

ज़िंदगी के इस जद्दोजहद में,
जहां हर ओर अंधेरा ही अंधेरा है,
कुछ उजाले की ख़ोज में निकल पड़ा हूं,
कुछ अपनी मंज़िल बनाने चला हूं,
लड़ता हूं हर दिन हालात से मैं,
हारता हूं हर दिन तकदीर से,
फ़िर भी अपनी एक दुनियां बनाने,
अपनी मंज़िल को पाने,
निकल पड़ता हूं हर सुबह,
हर शाम को फ़िर मैं वापस आता,
थक हार कर तक़दीर से,
फ़िर से नई सुबह की आस लिए,
निकल पड़ता हूं हर सुबह,
उलझ चुका हूं अब इस जद्दोजहद से,
पूछता हूं तकदीर से,
कर कुछ तो इशारा तुम बता अपनी राह बनाऊं कैसे?.."— % &

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26 MAY 2021 AT 9:34

"बेबसी का पर्याय बनकर,
वो जिए जा रहा है,
दिन भर की मजदूरी से,
दो जून की रोटी कमा रहा,
कुछ पल को वो खुश हो जाता जब शाम ढले वो घर आता है,
अपने बच्चो के चेहरे पर जब मासूम मुस्कान पाता है,
फ़िर भोर के इंतज़ार में चैन से सो जाता है,
फ़िर निकल पड़ता काम की तालाश में,
काम की तालाश करते दो जून की रोटी फ़िर कमाता है,
वो क्या जाने घर में रहना,
जो दो जून की रोटी को समर्पण है...।"

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25 MAY 2021 AT 20:24

"हां तुम्हारे जाने का गम ही था,
जो उस रास्ते पर जाना छोड़ दिया,
वो रास्ता जो हमारी मोहब्बत का सबूत है,
अब वो रास्ता मुझे बुलाता है,
जब भी गुजरता हूं बगल से उसके,
वो अपनी तन्हाई की दास्तां सुनाता है,
कहता है तब तो दोस्त बुलाते थे मुझे,
अब मुझे ताकने भी नहीं आते,
जैसे तुम छोड़ दिए मुझे तुम्हारी मोहतरमा भी छोड़ दी,
बस कुछ यादें हैं कुछ क़िस्से हैं,
जो तुम्हारे मोहब्ब्त से ही जुड़ते हैं,
आओ फ़िर से सुनाओ मुझे अपनी मोहब्ब्त की दास्तां मैं फ़िर से तुम दोनो को निहारूंगा..।"

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25 MAY 2021 AT 10:22

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17 JAN 2021 AT 8:00

"इश्क, मज़ा आ गया तुमसे मिलकर,
गज़ब का एहसास है तुममें,
पर इश्क़ क्या तुम और बेवफ़ा दोनों आशिक हो क्या,
तुम आते तो वो भी तुम्हें ढूंढ़ते- ढूंढ़ते आ जाता।"

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5 NOV 2020 AT 6:46

"मासूमीयत भरी मोहम्मद थी वो अपनी,
उसकी मासूम मुस्कुराहट का कायल जो था मैं,
सच से अनजान रहकर उससे बेइंतहां मोहब्ब्त करता रहा,
पूरी ज़िंदगी साथ निभाने का सपने संजोए रहा,
वो भी मोहब्ब्त का खेल जो हमसे खेलता रहा,
अपनी मासूम मुस्कुराहट से मुझे रिझाता रहा,
जब उठा झूठ और फरेब का पर्दा मेरे मोहब्ब्त से,
ज़िंदगी यूं ही वहीं पर थम सी गई,
न उसके बाद कभी मेरी मुस्कुराहट मेरा साथ दिया,
न उसका मासूम चेहरा मुझे मासूम लगा,
नफ़रत से बढ़कर क्या ही होता उसके बाद,
बस मोहब्बत की खातिर उसको अपना दोस्त बना लिया।"

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14 MAY 2020 AT 11:46

"तुम रहोगे हमेशा मेरी ज़िंदगी बनकर,
हर ग़म को हम जीयेंगे साथ मिलकर,
जब भी आयेगी खुशियां ज़िंदगी में हमारे,
साथ - साथ जीयेंगे हम हर एक पल,
वहम था मेरा ये जो तुम्हारे जाने के ग़म ने मुझे बतला दिया,
तुम चंद पल की मेहमान थी मेरी ज़िंदगी में,
आज तुम्हारी जुदाई ने मुझे समझा दिया,
तुम थे कभी मेरे दिल में,
वहम था मेरा जो तुम्हें हमेशा अपने दिल में रखने का ख़्वाब देखा,
देखो न आज चले गए तुम मुझे अकेला छोड़कर,
मैं और मेरा वहम रह गयें अपनी ज़िंदगी में तन्हाई के साथ...।"

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10 MAY 2020 AT 10:46

"मेरी जुबां शायद तुम्हें बता पाती,
हम कितने हैं तुम्हारे शायद तुम्हें जता पाती,
मेरी हर दुआ में तुम्हारा ही नाम है,
काश! मेरी आंखे तुम्हें दिखा पाती,
हर एक लम्हा एक अरसा सा बीत रहा,
काश! मेरी ख़ामोशी तुम्हें बता पाती,
गर मेरी ख़ामोशी सुन लो तुम,
मेरे जज़्बात जो पढ़ लो तुम,
मेरी मोहब्ब्त के हर अ़फसाने तुम्हें,
बताएगी मेरी मोहब्ब्त को,
कैसे जी रहें हैं हम तुम्हारे बिन,
तुम भी ये जान जाओगे,
हो जाओगे तुम भी मेरे अपने,
और हमारी मोहब्ब्त के क़िस्से तुम भी सबको बतलाओगे....।"

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9 MAY 2020 AT 17:22

"सफलता और असफलता हमारे जीवन में ठीक वैसे ही दो प्रकृति प्रदत्त है जैसे नदी का दो किनारा जैसे सिक्के का दो भाग, जो जीवन में हर मोड़ पर हमें मिलती, पर सफलता और असफलता उस कार्य पर हमारे द्वारा किए गए मेहनत, इमानदारी और लगन पर भी निर्भर करता है, अगर हम किसी कार्य को अपना शत प्रतिशत देकर पूरी इमानदारी और निष्ठा से करते हैं तो हमारे सफल होने की संभावना बढ़ जाती है, इसका मतलब ये कतई नहीं है कि हम उस कार्य में सफल ही होंगे पर हां एक बात तो निश्चित है कि हमें अपने आप से ये शिक़ायत नहीं रहेगा कि हम अपने तरफ़ से कोई कमी किएं हैं और हमें हिम्मत मिलती है कि हम फ़िर से अपने जीवन में कोशिश करें और सफलता की ओर ख़ुद को ले जाए अब ये सुनिश्चित कैसे हो कि हम फ़िर उस कार्य में सफल होंगे कि नहीं इसके लिए ज़रूरी है हम ख़ुद को ज्यादा मौक़ा नहीं दे हम किसी भी कार्य में ख़ुद को उतना मौक़ा दे जितना हमें अपने आप को परखने में लगें और जब हम ख़ुद को उस कार्य की तुलना में परख़ लेंगे उसके बाद हम ये भी समझ जायेंगे कि उस कार्य में हमें सफलता मिलेगी या नहीं कभी कभी ऐसा होता है कि वो कार्य हमारे लिए हो ही नहीं तो समझदारी इसी में है कि हम उस कार्य को स्वेच्छा पूर्वक छोड़ दे और किसी और कार्य में कोशिश करें और कोशिश से कभी भी पीछे नहीं हटना ही एक सफल इंसान की पहचान है। धन्यवाद

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8 MAY 2020 AT 8:47

"एक लंबा वक्त बीत गया है,
तुम कभी मुझे याद किए भी होगे,
मुझे तो आज भी याद है,
तुमसे आख़िरी बार की वो मुलाक़ात,
चांद की रौशनी में तुम्हारा दीदार,
वो सुनहरी मुस्कान पर तुम्हारे आंसू,
और न चाहते हुए भी तुम्हारा मुझसे दूर-दूर रहना,
मुझे आज भी याद है,
तुम्हारा मेरे पसंद की जगह पर आना,
मेरे दिये वो अंगूठी को लौटाना,
और मुझसे कभी न मिलने की गुज़ारिश करना,
मुझे आज भी याद है,
तुम्हारा बोलते-बोलते रो जाना,
और मुस्कुराकर मुझसे
आख़िरी बार आई लव यू बोलकर चले जाना...।"

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