आज क्यी अर्सो बाद एक लहज़े से रूबरू हुए ... सुकून था पर मिजाज़ थोड़ा खराब था , पर इस बार कदम लड़खड़ाए नहीं... क्योंकि मेरा गालिब मेरे साथ था, महफिल मे लफ्ज़ मेरे थे शायद... मेरे यार का एक रूबाब था, जो खोया था उसकी कसक थी और जो पाया था,उसका हिसाब था ....