24 NOV 2017 AT 2:31

बहुत मासूम हो तुम
लबों से कुछ कहती नहीं हो
और ऑखों से हक अदा करती हो
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मैं भी कितना मगरुर हूँ कि
तुमसे इजहार-ए-मुहब्बत करता नहीं
बस मजे दिल्लगी को करता हूँ
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अब सितम इतना भी हमारा नहीं होगा
तुम्हें कोई और अपना कहें , हमें गवांरा नहीं
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गैरोें की नजर से बचकर मेरे घर आ जाओं
सदियो का अंधेरा है दीपक जलाने आ जाओं
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मैं बहका हवा हूँ मूझे पनाह की जरुरत है
विरानी में सिर्फ तेरे आने की ही आहट है
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- Rohit choudhary