मेरे कमरे के कोने में जाले लगे हुए हैं
मुझे उन्हें साफ़ करना अच्छा नहीं लगता ...
हाँ मेरा मन भी मेरे कमरे की ही तरह है
उसमें भी कुछ आत्मग्लानि के जाले लगे हुए हैं
वो भी बरसों से साफ़ नहीं किए गए या उन्हें साफ़ करने की कोशिश ही नहीं की गयी
शायद कभी वो वक़्त आए जब अंदर बाहर दोनों के जाले हट जाएं ...मिट जाएं ...हमेशा के लिए
कोई ऐसा हो ...जिसके सामने ये आखें फूट फूटकर सारा पानी बहा दें मन की तरफ जहाँ ये उन जालों को बहाकर ले जाए दूर कहीं ......
-