Rohit Bhoria   (Rohit Bhoria)
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Not a writer, trying to be.
Insta:rohitbhoria
Joined 4 December 2017


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28 AUG 2023 AT 15:04

कुछ बादल चाह कर भी वहाँ नहीं बरस पाते जहाँ बरसना होता है तो खुद को खुद में समेट कर फट जाते हैं

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21 AUG 2023 AT 23:15

किसी एक नजर के मुन्तजिर बन जाएं
बनके फ़ूल उनकी राहों में बिछ जाएं
याद करे वो तो हाज़िर हो हमारी सुरत
हम इस दुनिया से ऐसे छिप जाएं
रातें कभी ग़मगीन ना हो उनकी
कभी ना गिरे कोई मोती तकियों पर
समेट कर उनके सारे ग़मों को
अगर वो चाहें तो हम मर जाएं ।

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12 MAR 2023 AT 18:38

मेरे कमरे के कोने में जाले लगे हुए हैं
मुझे उन्हें साफ़ करना अच्छा नहीं लगता ...
हाँ मेरा मन भी मेरे कमरे की ही तरह है
उसमें भी कुछ आत्मग्लानि के जाले लगे हुए हैं
वो भी बरसों से साफ़ नहीं किए गए या उन्हें साफ़ करने की कोशिश ही नहीं की गयी
शायद कभी वो वक़्त आए जब अंदर बाहर दोनों के जाले हट जाएं ...मिट जाएं ...हमेशा के लिए
कोई ऐसा हो ...जिसके सामने ये आखें फूट फूटकर सारा पानी बहा दें मन की तरफ जहाँ ये उन जालों को बहाकर ले जाए दूर कहीं ......

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15 JAN 2023 AT 9:37

इल्म नहीं तुम्हें
पहलू मैं बैठकर भी अजनबी बने रहना
कितना दुखदायी होता है साथ होकर भी साथ ना रहना
इल्म नहीं तुम्हें
कितने मुफलिसी के दिन हैं हमारे
वक़्त नहीं हमारा ,कोई इंसान नहीं हमारा ।

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24 NOV 2022 AT 19:24

हद है उसकी अदावत की भी
मिलता भी है और नजर भी नहीं मिलाता।

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21 NOV 2022 AT 22:41

उसने एक बार मेरा दिल रखने के लिए बात की
और फिर मेरा दिल ही रख लिया ।



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1 NOV 2022 AT 18:34

आएगी ये बात तुम्हें भी याद मेरे अजीज
कि इस चेहरे पर भी कभी हँसी खिलती थी

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28 OCT 2022 AT 18:35

सारी खुशियाँ मुट्ठी में भरकर
उसके सामने खोलूँ मैं
चूम कर उसके माथे को
यूँ लगे जैसे आसमान को छू लूँ मैं
महक बस जाए उसकी मेरे तन में
खुशबु गुलाब की भूलूँ मैं
बनकर असीर उसके इश्क़ का
जंजीरें कभी ना खोलूंँ मैं
रखकर सिर उसकी गोद में अपना
गम सारे अपने यूँ भूलूँ मैं
सुनकर उसकी मीठी आवाज को
स्वाद शक्कर का भूलूँ मैं
गले लगा कर उस को
अपने पाप यूँ धोलूँ मैं
सारी खुशियाँ मुट्ठी में भरकर
उसके सामने खोलूँ मैं

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16 OCT 2022 AT 16:51

अब इस से ज्यादा क्या ही होगा,
अब मुझे भी खुद पर दया आती है ।

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27 SEP 2022 AT 17:36

जिसने भी हँस कर बात की तूने गले लगा लिया
भीड़ में पता कैसे चले मेरा रकीब कौन है ।

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