27 JUN 2017 AT 18:09

उन्स-ए-वस्ल ब-दस्तूर जारी है
कोई ये न समझे ये जुस्तजू
वाबस्ता सिफ़र से है॥

ज़मीं से फ़लक तक
मुसलसल है नूर जिनका
उनके इख़लास की रिवायत से
बाद-ए-सबा मोजज़ा-ए-हवा
बनकर भारी है॥

~ रोहन

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